पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/३७०

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हीनयान का पुराना भाम्नाय को पिटक में उपनिका है, स्पष्ट नहीं है। उसके बादों में पत्र विरोष पाया जाता है। पुन: हम सब निकायों के विचारों से भली मति परिचित मी नहीं है। इस कारण प्राचीन मत के मानने में कठिनाई है, तथापि पूसै इसके मानने का प्रयान करते हैं। गोग और गोरधर्म पुरों का कहना है कि एक बात जो बड़े महत्व को है, असन्दिग्ध है। वह यह है कि बौर-बर्म योग की एक शाखा है। योग में ब्रह्मचर्य, यम-नियम, ध्यान-धारणा-समाधि, नासाग्र भूमध्यादि का दर्शन, काय-स्थैर्य, मंत्र-बप, प्राणायाम, ताल में जिला का धारण, महाभूतों का ध्यान, भूत-अय, अणिमादि अष्ट ऐश्वयों की प्राप्ति और लोकोत्तर गन स्पहीत है। योग की इस प्रक्रिया का धार्मिक जीवन और शील से कोई संबन्ध नहीं है। किन्तु इसका उनसे योग हो सकता है। बौर-धर्म का केन्द्र मितु-सच है। बुद्ध के पहले से भारत में भमणों के अनेक संघ थे। दुख का मिनु-संघ भी इसी प्रकार का एक संघ था | अन्य संघों के समान इसके भी शील- समाधि के नियम थे। इसकी मौलिकता इसमें है कि इसको बुद्ध ऐसा शास्ता मिला, जिसकी शिक्षा से प्रभावित होकर योग की चर्या और उसके सिद्धान्तों ने एक विशेष रूप धारण किया । प्रारंभ में बौर-धर्म अस्थिर अवस्था में था। वह युग स्थिर और निश्चित मतवाद कान था, और न धर्म-विनय में अभी स्थिरता पाई थी। प्रायः सब योगी समान मागों से एक ही लक्ष्य की प्राप्ति के लिए उद्योग करते थे, किन्तु वह शास्ता और संघ को समय समय पर मदला करते थे, और कभी वे 'मेरवाद से (स्थविवाद ) और कभी शानवाद (भाणवाद) को स्वीकार करते थे [ मझिम २१६४ ] । उस युग में वाद-विवाद बहुत होता था । अमपा कहते सुनाई पड़ते थे कि बो मैं कहता हूँ वह सत्य है, अन्य सब मिथ्या है।""""मैं मानता , मैं दुख हूँ । उनका विश्वास था कि बालोक का ध्यान करने से शान-दर्शन होता है [दीप ३।२२३] । वह कहते थे कि ध्यान में प्रवेश कर मैंने देखा है कि लोक शाश्वत है........ बौद्धधर्म में शान का विशेष महत्त्व है, यद्यपि वह तक का श्राश्रय लेता है। वस्तुओं का यथाभूत-दर्शन समाधि में होता है, मिमिम १७१]। निम्न प्रश्नों पर उस समय विवाद होता था:-लोक का आदि है, या नहीं ? दुःख का समुदय क्या है ? क्या मात्मा और काय एक हैं। क्या मरणानन्तर सत्व का सर्वथा विनाश होता है। किन्तु ऐसा प्रतीत होता है कि वह निम्न प्रश्नों में इनसे भी अधिक रस लेते पे:-क्या निर्वाण के अनन्तर आर्य की उत्पत्ति हो सकती है १ कौन से तपों की अनुश है। दिव्यचक्षु, दिव्यभोत्र और परिचित हान कैसे होता है। ऐसी परिस्थिति में बड-संघ का जन्म हुआ था। विनय के प्रत्यों से ज्ञात होता है कि विविध संप्रदायों में प्राचार की विविधता थी। उनमें दो प्रकार के श्रमणों की तुलना की गयी है-पारण्यक और बिहार में निवास करने वाले मिच। कई बातों से ऐसा रचित