पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/३०६

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२१८ बोधिचित्तोसादसूत्रशास्त्र' में प्रज्ञापारमिता को सर्वधर्ममुद्राक्षय या अक्षयामुद्रा कहा है। उनके अनुसार प्रशापारमिता मुद्राला नहीं है । वह सत्य, भूत, प्रशोपाय है । बोधिसत्व का चित्त इस प्रकार प्रज्ञा की भावना करने से, धर्मता के परिशुद्ध होने से शान्त हो जाता है और उसकी प्रशापारमिता पूरी होती है । इस प्रकार षट्पारमिता के अधिगत होने से बोधिसत्व की साधना फलवती होती है। 1. 'अपि नाम करन धर्मो योगलक्षणो नामेयुष्यते सर्वधर्ममुद्राक्षापामुद्रा । भानु मुमासु न मुद्रावक्षमित्युच्यते सत्वं भूतं प्रज्ञोपायः प्रज्ञापारमिता ।..."बोधिसत्वस्म महासलस प्रशां भावपतो न पिचरति वर्माबा: परिवल्यात् । एवं परवति प्रशा. पारमिताम् ।' [मो. पि.पू.शा.पु..]