पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/२५५

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भएममध्याय नाथ भारत अब हम नागे इन दोनों दर्शनों के प्रधान प्राचार्यों का संक्षिप्त परिचय देंगे। नागारान-तारानाथ का कहना है हीनयानवादियों के अनुसार शतसाहसिका प्रज्ञापारमिता अन्तिम महायान-सूत्र है; और इसके रचयिता नागार्जुन है। प्रज्ञापारमितासूत्र-शास्त्र अवश्य नागार्जुन का बताया जाता है। यह पंचविशतिमहलिका-प्रज्ञापारमिता की टीका है। हो सकता है इसी कारण भूल से नागार्जुन को शतसाहसिका प्रज्ञापारमिता का रचयिता मान लिया गया हो । कम से कम नागार्जुन महायान के प्रतिष्टापक नहीं है, क्योंकि इसमें सन्देह नहीं कि उनसे बहुत पहले ही महायान-सूत्रों की रचना हो चुकी थी। शुभानन्च्याङ्ग के अनुसार अश्वघोष, नागार्जुन, आर्यदेव और कुमारलब्ध '- कुमार- लात ) समकालीन थे। वह इनको बौद्ध-जगत् के चार सूर्य मानते हैं । राजतरंगिणी के अनुसार बोधिसत्व-नागार्जुन हुष्क, जुष्क और कनिष्क के समय में काश्मीर एकमात्र स्वामी थे । तारा- के अनुसार नागार्जुन, कनिष्क के काल में पैदा हुए थे। नागार्जुन का समय द्वितीय शताब्दी हो सकता है, किन्तु नागार्जुन के सम्बन्ध में इतनी कहानियां प्रचलित हैं कि कभी-कभी उनके मास्तिरे बारे में ही सन्देह होने लगता है । कुमारजीव ने ४०५ ई. के लगभग चीनी भाग में नागार्जुन की जीवनी का अनुवाद किया था। इसके अनुसार उनका जन्म दक्षिण में ब्राहाण-कुल में हुअा था। वह ज्योतिर, आयुर्वेद तथा अन्य विद्याओं में निपुण थे। वह जादूगर समझे जाने थे। उनकी इतनी प्रसिद्धि हुई कि कई शताब्दी बाद में भी अनेक ग्रन्थ उन्हीं के बताये जाते हैं। नागार्जुन का मुख्य ग्रन्थ कारिका या माध्यमिक-सूत्र है। इस ग्रन्थ में ४.. कारिकायें हैं | नागार्जुन ने इस पर एक टीका लिखी थी। जिसका नाम 'अकुतोभया है। इसका फेवल तिब्बती अनुवाद पाया जाता है। बुद्धपलित और विवेक ने भी इस ग्रन्थ पर टीकायें लिखी थी, किन्तु उनके भी केवल तिन्नती अनुवाद ही मिलते हैं। केवल चन्द्रकीर्ति की 'प्रसन्नपदा' नामक संस्कृत टीका उपलब्ध है। नागार्जुन ने माध्यमिक सम्प्रदाय की स्थापना की। इसे शून्यवाद भी कहते हैं । चन्द्रकीर्ति सिद्ध करते हैं कि माध्यमिक नास्तिक नहीं है। नागार्जुन संवृतिसत्य और परमार्थसत्य को शिक्षा देते हैं। परमार्थसत्य की दृष्टि से न संसार है, न निर्वाण । नागार्जुन के अन्य ग्रन्थ युक्तिपष्टिका, शून्यता-सप्तति, प्रतीत्यसमुत्पाद-हृदय,महायानविंशक और विग्रह-व्यावर्तनी हैं। इनके अतिरिक्त भी कई ग्रन्थ हैं, बो नागार्जुन के बताये जाते हैं। किन्तु उनके बारे में हम निश्चित रूप से कुछ नहीं कह सकते । धर्म-संयह पारिभाषिक शब्दों का एक कोप है। इसे भी नागार्जुन का लिखा बताते हैं। इसी प्रकार 'सुहल्लेग्ज' के रचयिता भी नागार्जुन कहे जाते हैं। इसिंग ने इसकी बड़ी प्रशंसा की है। उनके समय में यह बहुत लोकप्रिय था। उनके अनुसार इसके रचयिता नागार्जुन थे। चीनि के अनुसार जिस राजा को यह लेख लिखा गया था, वह शातवाहन था। तिब्बतियों के अनुसार यह उदयन था। माध्यमिक के अन्य प्रसिद्ध प्राचार्य देव या आर्यदेव बुद्धपालित, चन्द्रकीर्ति और शान्तिदेव हैं 1