पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/२५२

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अष्टम अध्याय साधना, महायान-दर्शन को उत्पत्ति और उसके प्रधान आचार्य पहले हम महायान-धर्म की उत्पत्ति और उसकी कुछ विशे वायों का उल्लेख कर चुके हैं। हमने देखा है कि महायान का हीनयान से मौलिक मंद है । इसकः अागम-ग्रंथ, इसकी चर्या, इसका बुद्धवाद, इसका सब कुछ भिन्न है। हम देखेंगे कि इसका दर्शन भी सर्वथा भिन्न है । संक्षेप में महायान की ये विशेषतायें है:-बोधिसत्य की कल्पना, बोधिचित्तग्रहण, पटपार- मिता की दश-भूमि,त्रिकायवाद और धर्म-शून्यता या तथता । महायान-ग्रन्थों में हीनयान को श्रावक-यान और महायान को बोधिसत्व-यान भी कहते हैं। असंग महायानसूत्रालंकार में कहते हैं कि श्रावक-यान में परीहत-साधन का प्रयत्न नहीं है, केवल अपने ही मोद का उपाय- चिन्तन है। महायान का अनुगमन करनेवाला अपयन्त सत्वों के समुद्धरण का अाशय रखता है और इसके लिए बोधि-चित्त का समादान करता है। हानयान का अनुयायां केवल पुद्गल- नैरात्म्य में प्रतिपन्न है, किन्तु महायान का अनुयाया धर्मनाम्य या धर्म-शस्यता भ भी प्रतिपन्न है । महायानों का कहना है कि वह लंशावरण और अंबावरण दोनों को अपनीत करता है। उसके अनुसार हानयानी केवल संसारण का ही अपनयन करता है। महायान का प्रधान अागम प्रज्ञापागमता है। हमने पिछले अध्याय में देखा है कि इसमें ही सबसे पहल शून्यता के सिद्धान्त का प्रतिपादन है । यहा हानयान स महायानदर्शन की भिन्न करने का बीज है। संत्रान्तिको के अनुसार महायान का शिक्षा सबसे पहल अष्टसाहसिका- प्रज्ञापारमिता में पार्या जाती है । प्रज्ञापारमिता कई हैं। इनमें अपमासिका सबसे प्राचीन है । इमका समय ईमा से एक शती पूर्व अवश्य होगा। साहसिकाय महायान के सबसे महत्वपूर्ण ग्रन्थ समझे जात हैं । महायानदर्शन के अादि प्राचार्य नागार्जुन ने इनमें से एक- का भाष्य लिखा था । इस ग्रन्थ को महाप्रज्ञापारमिताशास्त्र कहते हैं । पहले हमने कहा है कि महायान के संकेत हीनयान में भी पाये जाते है । सर्वास्तिवाद का जो अवदान-साहित्य है, उसमें बोधिसत्व-यान का पूर्वरूप व्यक्त होता है। दिव्यावदान सर्वास्तिवाद का ग्रन्थ है, इसमें पूर्ण की कथा मिलती है । दिव्यावदान में अनुत्तरसम्यक् सम्बोधि का भी उल्लेख है । ऐसी अनेक कथायें हैं, जिनमें दिखाया गया है कि पारमिताओं की साधना के लिए उपासक अपने जीवन का भी उत्सर्ग करते हैं, वह ऐहिक या पारलौकिक सुख के लिए, यज्ञशाल न होकर अनुत्तर-सम्यक्-संबोधि के लिए यनवान हैं, जिसमें वह सब जीवों को विमुक्त करें । महावस्तु में हम ऐसे उपासकों का उल्लेख पाते हैं, जो बोधिचित्त का महण कर बोधि के