पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/२४८

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बौद-धर्म-दर्शन सर्व प्रावकप्रत्येक बुद्धों के चित्तों से असाधारण है। ऐसे महान चित्त में भी अनासक्त और अपर्यापन्न होने से वह बोधिसत्व महासत्व कहा जाता है। शारिपुत्र ने पूछा-आयुष्मन् सुभूति ! क्या कारण है कि ऐसे महान् चित्त में भी वह अनासक्त और अपर्यापन्न है ? सुभूति ने कहा-हे शारिपुत्र ! इसलिए, कि वह चित्त अचित्त है । तब पूर्ण मैत्रीयणीपुत्र ने कहा-भगवन् ! महासन्नाहसन्नद्ध होने से, महायान में संप्रस्थित होने से वह सत्त्व महासत्त्व कहा जाता है । भगवान् ने कहा-सुभूते ! यह महासन्नाहसन्नद्ध इसलिये है कि उसका ऐसा प्रणिधान है-"अप्रमेय सत्त्वों का मुझे परिनिर्वापण करना है ।" वह उन असंख्येय सत्वों का परिनिर्वापण करता है । वास्तव में सुभूति ! ऐसा कोई सत्त्व नहीं है जो परिनिवृत्त हो या परिनिर्वृत्त कराता हो । मुभूते ! यह धर्मों की धर्मता है कि सभी मायाधर्म है । जिस प्रकार कोई यक्ष मायाकार महान् बनकाय को निर्माण करके उसका अन्तर्द्वान कर, लेकिन उससे न कोई जन्म पाता है, न मरता है, न नष्ट होता है, न अन्तर्हित होता है, उसी प्रकार हे सुभूते ! वह बोधिसत्व अप्र- मेय सल्वों को परिनिवृत्त करता है, तथापि न कोई निर्वाण को प्राप्त होता है, न कोई निर्वाण का प्रापक है। तब सुभूति ने कहा-तब तो भगवान के भाषण का अर्थ यह है कि बोधिसत्व असन्नाह- सबद्ध ही है? भगवान् ने कहा-ठीक ऐसा ही है, सुभूते ! सर्वज्ञता अकृता है, विकृत है, अनभि संस्कृत है। वे सत्व भी अकृत है, अविकृत है; अनभि-संस्कृत है; जिनके लिये यह बोधिसत्व सबाहसन्नद्ध है । क्यों ? निर्माण को प्राप्त होनेवाला और प्रापक ये दोनों धर्म अविद्यमान है। तब सुभूति ने भगवान से कहा- भगवन् ! महायान-महायान कहते हैं। महायान क्या पदार्थ है ? भगवन् ! मैं मानता हूं कि आकाशसम होने से, अतिमहान् होने से यह महा- यान कहा जाता है। इसका न अागम देखा जाता है न निर्गम । इसका स्थान संविद्यमान नहीं है। इसका पूर्वान्त, मध्यान्त, या अपरान्त मा अनुपलब्ध है। यह यान समहै, इसलिये यह महायान है । भगवन ! महायान नामका कोई पदार्थ नहीं है । 'बुद्ध' यह भी एक नामधेयमात्र है, बोधिसत्व, प्रज्ञापारमिता यह भी नामधेय मात्र है । और ऐसा क्यों ? भगवन् ! जब बोधिसत्व इन रूपादि धर्मा की प्रज्ञापारमिता से परीक्षा करता है, तब रूप न प्रासे होता है न नष्ट होता है; न वह रूप का उत्पाद देखता है, न विनाश देखता है। ( इसी प्रकार अन्य स्कन्ध भी ) क्यों १ जो रूपका अनुत्पाद है वह रूप नहीं है, जो रूप का अव्यय है वह भी रूप नहीं है। इस प्रकार से अनुत्पाद और रूप तथा अन्यय और रूप ये दोनों अद्वय है, अद्वैधीकार है " तब आयुष्मान् शारिपुत्र ने कहा-आयुष्मान सुभूति ! अापकी देशना के अनुसार बोधिसत्व भी अनुत्पाद है। ऐसा होने पर वह बोधिसत्व दुष्कर चारिका करने के लिए क्यों उत्साहित होगा। ..."