पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/२२६

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पौर-धर्म-दर्शन होने की कथा वर्णित है । इसका कियदंश ही प्राप्त है। इसका उद्धार प्रोफेसर लुधर्स ने किया है । यह तीनो ग्रन्थ एक ही ग्रन्थकार के रचे मालूम होते हैं। एक ही प्रकार के भाव और वाक्य बुद्धचरित और सौन्दरनन्द में बार-बार मिलते हैं। श्रीजान्सटन, जिन्होंने बुद्ध-चरित का सम्पादन किया है, भूमिका में लिखते हैं कि मैं तब तक बुद्ध-चरित का संपादन नहीं कर सका जब तक मैंने सौन्दरनन्द का पाठ ठीक तरह से निश्चत नहीं कर लिया। चीनी और तिब्बती अनुवाद अश्वघोष को अन्य-ग्रन्थों का भी रचयिता बताते हैं। टामस ने इन गन्थों की सूची कवीन्द्रवचनसमुच्चय में दिया है, क्योंकि संस्कृत-गन्थ अप्राप्य हैं । इसलिये उनके सम्बन्ध में कुछ निश्चित रूप से कहना संभव नहीं है । किन्तु वे अन्य जिनका विषय मुख्यतः दार्शनिक है अथवा जिनमें महायान का विकसित रूप पाया जाता है, अश्वघोष के नहीं हो सकते, क्योंकि अश्वघोष कवि और प्रचारक हैं, और उनका समय महायान के विकसित रूप से पूर्व का है । किन्तु कुछ ऐसे संस्कृत-प्रन्थ है जिनके संबन्ध में मत देना आवश्यक है। प्रोफेसर लुडर्स को शारिपुत्र-प्रकरण के साथ दो नाटकों के अंश मिले थे, इनमें से एक के तीन श्लोक मिले हैं। इनकी शैली अश्वघोष की शैली से मिलती है । एक श्लोक में बुद्ध के ऋद्धि-बल का प्रदर्शन है और सौन्दरनन्द, सर्ग ३, श्लोक २२ से इसका साम्य है । दोनों में एक ही उपमा का प्रयोग किया गया है । क्या यह संभव है कि कोई दूसरा अश्वघोष की शैली की विशेषताओं का इतना अच्छा अनुकरण कर सकता ! दूसरे नाटक में एक नवयुवक की कथा है जिसका अनुचित-संबध मगधरती से हो गया, और जिसने बौद्ध-धर्म में दीक्षा ली। इस नाटक के रचयिता के सम्बन्ध में कुछ कहना कठिन है क्योंकि हमारे पास यह कहने के लिये पर्याप्त प्रमाण नहीं है, कि यह अन्य भी अश्वघोष की रचना है। तीन और ऐसे ग्रन्थ है जिनके रचयिता अश्वघोष बताये जाते हैं। इनमें से एक वन- सूची है। इस ग्रन्य की शैली.अश्वघोष की शैली से सर्वथा भिन्न है । चीनी अनुवाद के अनु- सार धर्मकीर्ति इसके रचयिता है। इसकी सत्यता पर सन्देह करने का कोई कारण नहीं मालूम होता। कम से कम यह ग्रन्थ अश्वघोष का नहीं है । दूसरा ग्रन्थ गंडी-स्तोत्र है । इसमें २६ श्लोक हैं। अधिकांश श्लोकों का छन्द सन्धरा है। २० वें श्लोक के अनुसार यह ग्रन्थ काश्मीर में लिखा गया जब कि वहां का प्रबन्ध बिगड़ गया था। शैली की दृष्टि से इसका अश्वघोष की कृतियों से कोई साम्य नहीं है। पुनः यह अन्य कई शताब्दी पीछे का मालूम पड़ता है। इसिंग 'सूत्रालंकार' नाम के अन्य का उल्लेख करते है जिसे वह अश्वघोष का बताते है । सन् १९०८ में इ० ह्यूवर ने इस नाम से एक चीनी ग्रन्थ का अनुवाद प्रकाशित किया था, जिसे चीनी अनुवादक अश्वघोष का बताते हैं। बाद को मध्य एशिया में मूल संस्कृत के अंश लुडर्स को मिले और उन्होंने सिद्ध किया कि ग्रन्थकार का नाम वहां कुमारलात बताया गया है और ग्रन्थ का नाम कल्पनामण्डितिका है। इससे बड़ा विवाद उठ खड़ा हुश्रा । कई प्रसिद्ध विद्वानों ने अपना यह मत व्यक्त किया कि यह संग्रह या तो अश्वघोष का है अथवा कुमारलात ने अश्वघोष की किसी रचना को नया रूप दिया है । अन सामान्यतः