पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/२२४

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बौदर्शन नहीं है। किन्तु ललित-विस्तर में अतिशयोक्ति की मात्रा अधिक है। २७ वें परिवर्त में महायान-प्रन्यों की परिपाटी के अनुसार अन्य के माहात्म्य का वर्णन है । “जो इस धर्मपर्याय को सुनेंगे वह वीर्यलाभ करेंगे; मार का धर्षण करेंगे। जो इस धर्मपर्याय की कथा बाचेंगे, जो कथा को सुनकर साधुकार देंगे, जो इस पुस्तक को लिखकर उसकी पूजा करेंगे, जो इसका विस्तार से प्रकाश करेंगे, यह विविध-धमों का लाभ उठावेंगे, इस धर्मपर्याय की महिमा अनन्त है। यदि तथागत कल्प भर रात-दिन इस धर्मपर्याय का माहात्म्य वर्णन करें तो भी उसका अन्त न हो और तयागत के प्रति भाव का भी क्षय न हो।" यह बहुत संभव मालूम होता है कि ललित-विस्तर हीनयान के किसी प्राचीन मूलमन्ध का रूपान्तर है। सर्वास्तिवादियों के मतानुसार यह प्रारंभ में बुद्ध-चरित का ग्रन्थ था, पीछे से महायान के रूप और श्राकार में परिणत और परिवर्धित हुअा। ग्रन्थ गद्यमय है, बीच-बीच में गाथा उपन्यस्त है। कथाभाग प्रायः गद्य में ही है । अनेक गाथायें हैं, बड़े सुन्दर ग्राम्य-गीत हैं, जिनका समय सुत्त-निपात की गाथाओं के सदृश अति प्राचीन है। सातवें परिवर्त में वर्णित जन्म और असित कथा, सोलहवें परिवर्त में वर्णित बिंबिसारोपसंक्रमण, अट्ठारहवें परिवर्त में वर्णित मारसंवाद इसके उदाहरण हैं। यह गाथायें बुद्ध के कुछ शताब्दी के बाद की हैं । २६ वें परिवर्त के कुछ गद्य भाग भी, जैसे वाराणसी का धर्म-चक्र प्रवर्तन, बौद्ध-ग्राम्नान के प्राचीनतम अंश है। दूसरी ओर अपेक्षाकृत नवीन भाग है जो गद्य और गाथा में लिखे गये है। हमको यह शान नहीं है कि ललित-विस्तर का अन्तिम संस्करण कब हुश्रा । पहले यह भूल से कहा जाता था कि ललित-विस्तर का चीनी अनुवाद ईसा की पहली शताब्दी में हुआ या। वस्तुतः हम यह भी नहीं जानते कि जो बुद्ध-चरित चीनी-भाषा में धर्म-रक्षित द्वारा सन् ३०८ में अनूदित हुआ था और जिसके बारे में कहा जाता है कि यह ललित-बिन्तर का दूसरा अनुवाद है, सचमुच वह हमारे ग्रन्थ का अनुवाद भी है। संस्कृत का शुद्ध तिब्बती अनु- वाद उपलब्ध है, जिसका समय पांचवीं शती है । फूको ने इसका संपादन फ्रेंच अनुवाद के साथ किया है। यह निश्चय है कि जिन रूपकारों ने (८५०-६०० ई०) जावा स्थित बोरो बुदुर के मन्दिर को प्रतिमाओं से सुशोभित किया था, वह ललित-विस्तर के किसी न किसी पाठ से, जो हमारे पाठ से प्राय. अभिन्न था, अवश्य परिचित थे। शिल्प में बुद्ध का चरित इस प्रकार खचित है मानों शिल्पी ललित-विस्तर को हाथ में लेकर इस कार्य में प्रवृत्त हुए थे। जिन शिल्पियों ने उत्तर-भारत में बौद्ध-पूनानी कला-वस्तुओं को बुद्ध चरित के दृश्यों से समलंकृत किया था वह भी ललित-विस्तर में वर्णित बुद्ध-कथा से परिचित है। अतः यह कहना उपयुक्त होगा कि ललित-विस्तर में पुरानी परंपरा के अनुसार बुद्ध- कथा वर्णित है तथा अपेक्षाकृत कई शताब्दी पीछे की कथा का भी सनिवेश है। इसमें सन्देह नहीं कि ललितविस्तर से बुद्ध-कथा के विकास का इतिहास जाना जाता है। साहित्य की दृष्टि से इसका बड़ा गौरव है, ललित-विस्तर में सुरक्षित गाथा और उसके कथांशों के आधार पर ही अवघोष ने बुद्ध-चरित नामक अनुपम महाकाव्य की रचना की थी।