पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/१९३

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पमध्याय नहीं हो सकते। पहले ७ मानुषी बुद्धों का उल्लेख मिलता है; धीरे-धीरे यह संख्या २४ हो जाती है । इनके अलग-अलग बुद्ध-क्षेत्र हैं, जहाँ इनका आधिपत्य है। इसी प्रकार का एक बुद्ध-क्षेत्र मुखावती-व्यूह है, जहां अमिताभ या अमितायु-बुद्ध शासन करते हैं । यहाँ दुःख का लव-लेश भी नहीं है। यह विशुद्ध-सल से निर्मित है। वहां अमिताभ के भक्त मरणानन्तर निवास करते हैं । सुखावती-व्यूह में नाम-जप, नाम-घोष, नाम-संकीर्तन का बड़ा माहात्म्य है । जो सुशील-पुरुष सच्चे हृदय से अमिताभ का नाम एक बार भी लेते हैं, वे सुखावती में जन्म लेते हैं । इस निकाय का प्रचार जापान में विशेष रूप से हुअा। यहाँ के एक मन्दिर में ही यह ग्रन्थ मिला था। इस प्रकार धीरे-धीरे बुद्ध-बाद विकसित हुआ। यह बौद्ध-शासन में एक नूतन परिवर्तन है । यह लोकोत्तरवाद महासांघिकों में उत्पन्न हुआ। हम महामांधिकों का स्थविरों से पृथक होना बता चुके हैं। विकसित होते-होते इस निकाय से महायान की उत्पत्ति हुई । बौद्ध-संघ दो प्रधान यानों (= मार्ग ) में विभक्त हो गया---हीनयान और महायान । हमने देखा कि किस प्रकार महायान ने बुद्ध को एक विशेष अर्थ में लोकोत्तर बना दिया। इससे बुद्ध-भक्ति बढ़ने लगी। जत्र यूनानियों ने बौद्ध-धर्म स्वीकार किया, तब बुद्ध की मूर्तियाँ बनने लगीं। भक्ति के कारण मूर्तिकला में भी उन्नति हुई। प्रसिद्ध रूपकारों ने प्रस्तर भगवान् के कुशल-समाहित-चित्त, उनकी मैत्री-भावना और करुणा, उनके पुण्य और शान के संभार का उद्ग्रहण करने की सफल चेष्टा की। यह व्यक्त है कि मूर्ति-कला पर इसका बड़ा प्रभाव पड़ा । गुप्तकाल इसका समृद्धिकाल है। महायान-धर्म को विशेषता स्थविर-बाद का आदर्श अर्हत्व और उसका लक्ष्य निर्वाण था। अर्हन् रागादि-मलों का उच्छेद कर श-बन्धन-विनिमुक्त होता था। उसका चित्त मंसार से विमुक्त और मन निर्विषयो होता था। श्रर्हत् अपनी ही उन्नति के लिए यन्नवान् होता था। उसकी साधना श्रष्टाङ्गिक मार्ग की थी। स्थविर-वादियों के मत में बुद्ध यद्यपि लोक-ज्येष्ठ एवं श्रेष्ठ है तथापि बुद्ध-काय जरा-व्याधि-मरण इत्यादि दुखों से विमुक्त न था। महासांघिकों के विचार बुद्ध एक विशेष-अर्थ में लोकोत्तर थे। महामांधिक-बाद के अन्तर्गत लोकोत्तर-वाद एक अवान्तर शाया थी। इसके विनय का प्रधानग्रन्थ महास्नु है। इनके मत में बुद्ध को विश्राम अथवा निद्रा की आवश्यकता नहीं है और जितने समय तक या जीवित रहना नाहै, उतने समय तक जीवित रह सकते है। स्थविर-वादियों के अनुसार यदि नियम-पूर्वक अच्छा अभ्यास किया जाय तो इस दृष्ट्र-धर्म में ही निर्वाण-फर का अधिगम होता है । मोन के इस मार्ग का अनुसरण वह करता है जो शील-प्रतिष्ठित है. और ब्रह्मचर्य का पालन करता है। बुद्ध अन्य अहंतों से मिलते हैं, क्योंकि उन्होंने सत्य का उद्घाटन किया और उस मार्ग का निर्देश किया, जिस पर चलकर लोग संसार से विमुक्त होते हैं। इस विशेषता का कारण है कि बुद्ध ने पूर्व-जन्मों में पुण्य-राशि का संचय और अनन्त-शान प्राप्त किया था ।