पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/१३३

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पंचम अध्याय चालीस साधनों में से किसी एक का, जो अपनी चयों के अनुकूल हो, ग्रहण करना पड़ता है। कर्मस्थान का दायक कल्याणमित्र कहलाता है। क्योंकि वह उमका एकान्त हिती है । कल्याण- मित्र गम्भीर कथा का कहने वाला होता है तथा अनेक गुणों से समन्वागत होता है। बुद्ध से बढ़कर कोई दूसरा कल्याण-मित्र नहीं है। बुद्ध ने स्वयं कहा है कि जीव मुझ कल्याण-मित्र की शरण में श्राकर जन्म के बन्धन से मुक्त होते हैं । मम हि आनन्द कल्याणमित्तमागम्म जातिधामा सत्ता जातिया परिमुच्चन्ति । [ संयुत्त. शक] इसलिए बुद्ध के रहने उनके समाध ग्रहग करने से कर्मस्थान मुगृहीत होता है। महापरिनिर्वाण के अनन्तर ८० महाशावकों में से जो वर्तमान हो उससे कर्मस्थान का ग्रहण चित है । यदि महाश्रावक न हो तो ऐसे पुरुष के समीप कर्मस्थान का ग्रहण करना चाहिए जिसने उस विशेष कर्मस्थान द्वारा ध्यानों का उत्पाद कर विपश्यना की वृद्धि की हो और श्राश्रवों ' ( पालि 'श्रामवर ) का क्षय किया हो; निस कमन्थान के ग्रहण की वह इच्छा रखता है । यदि कोई ऐसा व्यक्ति न मिले तो क्रम से अनागामी, सकृदागामी, सोनापन्न, ध्यानलाभी, पृथग्जन त्रिपिटकधर, द्विपिटकघर, एक पिटवार में कर्मस्थान ग्रहण करना चाहिये। यदि आसव (संस्कृत 'प्राश्रय') लोक में बहुत काल की रखी हुई मदिरा को 'पासव' कहते हैं। इस अर्थ में जो ज्ञान का विपर्यय करे वह आसव है। दूसरे अर्थ में जो संसार-दुःख का प्रसव करते हैं उन्हें श्रासव कहते हैं। 'मासघ' क्लेश है। कम श्लेश तथा नाना प्रकार के उपद्ध भी पासव कहलाते हैं । पहायतन में आसव नीन बताये गये हैं -काम, भव, और अविद्या । पर अन्य सूत्रों में तथा अभिधम में आसव चार बताये गये हैं काम, भव, अविद्या और दए । जो अाधवों का क्षय करता है वह अहस्पद को पाता है। 'चिरपरिवासियर्टन' मदिरादयो बासवा वियातिपि आसमा युत्त हेतं । 'पुरिमा भिक्खने कोटि न पलायति अविज्जाय इतो पुटवे अधिज्जा नाभोसीति । अादि आयतका संसारदुश्वं सन्ति पसवन्तीति पि आसवा ।' 'सलायतने "सयो ये आवुसो पासवा कामासको भशासवो भविज्जासो" ति तिघा आगता । अनेसु च सुसन्तेसु अभिधम्मे च ते एव दिसवेन सह चतुधा आगता' । { मज्झिमनिकायकथा-सुब्बासव सुख ] स्रोतापत्र, सकृदागामी, अनागामी,--- सोलापन -'नोता आर्य अष्टाङ्गिक मार्ग को कहते हैं । जो इस मार्ग में प्रदेश को यह स्रोतापन है । स्रोतापन का विनिपात नहीं होता। वह नियत रूप से संबोधि की प्राप्ति करता है। (नियतो संयोधिपागयनो ) सकृदागामी---जो एक बार से अधिक पृथ्वी पर जन्म नहीं लेता। यह दूसरी अवस्था है। अमागामी-जो दोबारा पृथ्वी पर नहीं आता, जिसका यह अन्तिम मानव जन्म है। यह तीसरी अवस्था है। चौथी अवस्था अहंत की है।