अरण्यवासी पशु कहना चाहिए या प्रत्यक्ष देवता कहना चाहिए"। यह एक ऐसी उक्ति है कि इसमें सत्यता और असत्यता दोनोंका समान मिश्रण है। इससे अधिक सत्य अथवा असत्य व्यञ्जक उक्ति दोही चार शब्दोंमें, और किसी दूसरे प्रकारपर यदि कहनेवाला कहता; तो उसे विशेष कठिनाई पड़ती। जनसमुदायके विषयमें किसी मनुष्यके मनमें स्वाभाविक तिरस्कार और अनादर होना पशुत्वका लक्षण है। यह बात बहुत सत्य है। परन्तु इसप्रकार अरण्यवासको सुखप्रद माननेवालोंमें अणुमात्र भी देवांशका होना स्थिर करना; नितान्त असत्य है। हां जो मनुष्य सुखानुभवके लिए एकान्तवास नहीं करते किन्तु जन्म मरणादि दुःखोंसे छूटनेके लिए परमार्थ साधनके हेतु एकान्तवासका आश्रय लेते हैं वे अवश्यमेव प्रशंसनीय हैं। उनको देव अथवा देवांश मानना अनुचित नहीं। पुरातन समयमें क्रिश्चियन धर्म्माधिकारी और साधुपुरुष सच्चे अरण्यवासी होगए हैं। मूर्तिपूजकोंमें भी इस प्रकारके पुरुष पाए जाते हैं। यथाः–कांडियानिवासी यपीमिनीडस[१], रोमनिवासी न्यूमा[२], सिसलीनिवासी यम्पीडीक्लिस[३]; राइना निवासी अपोलो
- ↑ यपीमिनीडस कीटद्वीप मे उत्पन्न हुआ था और वहीं इसने मृत्यु पाई। सुनते हैं यह १५७ वर्षका होकर मरा था। इसने अनेक बार अनेक चमत्कार दिखलाए हैं। एक गुहामें एकबार यह ५० वर्षतक सोता रहा। कहते हैं यह अपने आत्माको शरीरसे यथेच्छ बाहर करदेता था और फिर बुलालेताथा।
- ↑ न्यूमा रोमका दूसरा राजाथा। यह अत्यन्त धर्मनिष्ठथा। किम्वदन्ती है कि यह राजा इजीरिया नामक देवताके प्रत्यक्ष दर्शन करके, उससे उपदेश ग्रहण करता था। ४३ वर्ष राज्य करके, ६७२ वर्ष ईसवी सन् के पहिले, इसने इस लोकका परित्याग किया।
- ↑ सिसलीमें, ईसवी सन् के ४४४ वर्ष पहले यम्पीडोक्लिसनामका एक प्रख्यात तत्त्ववेत्ता और कवि होगया है। कहते हैं इसने अनेक अद्भुत अद्भुत चमत्कार दिखलाए हैं। एक बार एकमृतस्त्रीको इसने सजीव कर दिया। इसका ठीक ठीक पता नहीं लगता कि यह कब और किसप्रकार मरा।