पृष्ठ:बेकन-विचाररत्नावली.djvu/९५

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(९०)
बेकन-विचाररत्नावली।


वे कहते हैं उसका अर्थ उन्हींको पूरा पूरा नहीं समझ पडता; और यह बात वे स्वयं जानते हैं परन्तु बाहरसे सर्वज्ञताका भाव दिखलाते हैं।

बहुतेरे मनुष्य अपनी मुखचर्या, भ्रूविक्षेप और हावभावादिसे अपनी बद्धिमत्ता प्रकटित करते हैं। सिसरोंने पिसो[१]के विषयमें ऐसाही कहा है। उसका कथन है कि जब पिसो उसके प्रश्नका उत्तर देताथा तब वह अपनी एक भ्रुकुटीको तो ऊपर ललाट तक चढ़ाले जाताथा और दूसरीको नीचे ठोढीतक झुका देता था। कोई कोई बड़े बड़े शब्दोंका प्रयोग करके लक्ष्यपूर्वक भाषण करते हैं। यदि किसी विषयको वे पूर्णतया सिद्ध नहीं कर सकते तो भी हठात् वे यही कहते जाते हैं कि जो कुछ हमने कहा वही यथार्थ है और बराबर बोलतेही चले जाते हैं। बहुत ऐसे होते हैं कि जो बात वे नहीं समझते उसे वे तुच्छ मानते हैं और उसको निरुपयोगी तथा तिरस्कार्य कहकर अपने अज्ञानको छिपाते हैं।

किसी किसीको भेदभाव करनेका स्वभाव पड़जाता है। ऐसे मनुष्य क्लिष्टकल्पना द्वारा सूक्ष्मसे सूक्ष्म भेद निकालकर लोगोंका मनोरञ्जन करते हैं। इस प्रकार अर्थच्छल करके मूल विषयका वे उत्थानही नहीं होने देते। ऐसे लोगोंका उपहास करनेके लिए प्लेटो[२]ने एक संदर्भ लिखाहै


  1. पिसो रोममें एक प्रसिद्ध पुरुष होगया है। यद्यपि वह कृपण था तथापि वह एक प्रख्यात वक्ता, व्यवहारदर्शन वेत्ता और इतिहासज्ञ था। लगभग १४९ वर्ष ईसाके पहिले वह विद्यमान था।
  2. प्लेटो ग्रीसमें एक अति व्याख्यात तत्त्ववेत्ता हुआहै। उसके नामसे प्रायः सभी लिखे पढ़े मनुष्य परिचित हैं। उसका नाम अरिस्टाक्लिस था परन्तु उसके कन्धे अतिशय विस्तृत होने के कारण लोग उसे प्लेटो कहकर पुकारने लगे। शारीरिक और मानसिक दोनों शिक्षा इसको पूर्णरूपसे दीगई थी। चित्रकला और कविता इसने पहिले पहिल विशेष अभ्यास किया था। कवितामेंतो इतना नैपुण्य इसने प्राप्त किया था कि थोड़ीही अवस्था में इसने एक उत्तम काव्य लिखाथा। परन्तु जब इसने उसे होमरके काव्यसें मिलाकर देखा तब उससे अपने काव्यको हीन पाया, अतः अपने ग्रन्थको अपनेही हाथसे इसने जलाडाला। २० वर्षके वयमें इसने एक नाटक भी लिखा था परन्तु उसके खेले जानेके पहिलेही इसने साक्रेटिसकी वक्तृता और कीर्ति सुनी और सुनकर ऐसा मुग्ध होगया कि उसका शिष्य बनकर तत्त्वज्ञान सीखनेलगा। ८ वर्षतक इसने साक्रेटिससे शिक्षाग्रहणकी अनन्तर ईजिप्त और इटली इत्यादि देश भ्रमण करके अपनी विद्याकी और भी अधिक इसने वृद्धिकी। इसने एथन्समें एक पाठशाला स्थापन करके सहस्रशः नवयुवकों को विद्यादान दिया। इसको ज्यामिति और गणित शास्त्रका बड़ा व्यसन था। इसने अनेक ग्रन्थ लिखे हैं। आत्माको यह अमर मानता था और पुनर्जन्ममेंभी विश्वास करता था। साक्रेटिसकातो शिष्यहीथा फिर भला क्यों न यह ऐसा करै? गुरुकेभीतो सिद्धान्त ऐसेही थे।