नहीं और यह बात प्रसिद्ध भी है कि जो मनुष्य अपने व्यवहार, चातुर्य और बुद्धिमत्ताको अतिशय महत्व देते हैं वे अन्तमें भग्नोद्यम होकर अवश्यमेव अभाग्यके पाशमें फँसते हैं।
अहं[१] सर्वेषु भूतेषु भूतात्मावस्थितः सदा।
तमविज्ञाय मां मर्त्यः कुरुतेऽर्चाविडम्बनम्॥
यो मां सर्वेषु भूतेषु सन्तमात्मानमीश्वरम्।
हित्वार्चा भजते मौढ्याद्भस्मन्येव जुहोति सः॥
श्रीमद्भागवत।
ईश्वर के जो योग्य नहीं है ऐसा मत कल्पना करने की अपेक्षा ईश्वरके विषय में कुछ भी ज्ञान न होनाही अच्छा है; क्यों कि ईश्वर का अस्तित्व न मानने से केवल नास्तिकताही होती है, परन्तु त द्विषयक अनुचित मत स्थिर करनेसे ईश्वर की विडम्बना होती है। प्लूटार्क[२] का भी यही मत है। वह कहता है कि "प्लूटार्क नामक एक मनुष्य था जो अपने लड़कों को उत्पन्न होतेही खा जाया करता था"—इस प्रकार लोगोंके कहने की अपेक्षा—"प्लूटार्क कोई थाही नहीं",—ऐसा कहना अत्युत्तम है। रोम और ग्रीसके प्राचीन लोग सातर्न (शनैश्चर) नामक एक देव
- ↑ जितने भूतहैं सबमें मैं उनका आत्मा रूप होकर विराज रहाहूं। उस आत्मारूप मुझको यथार्थतया न जानकर मनुष्य पूजारूपी विडम्बना करतेहैं। समस्त भूतवर्गोंमें विद्यमान् आत्मास्वरूप मुझ ईश्वर को छोंड़ जो मनुष्य मूढतावश पूजन पाठ इत्यादि के झगड़े में फँसता है उसका वह सब कर्म भस्ममें हवन करनेके समान, निष्फल जाता है।
- ↑ प्लूटार्क नामक ग्रीसमें एक तत्त्ववेत्ता होगया है। पूर्ववयमें इसे उच्च राज्याधिकार प्राप्तथा। यह प्रजावर्ग को अतिशय प्रिय था। राजकाज परित्याग करके अपना उत्तर वय इसने पुस्तकावलोकनमें व्यतीत किया और कई एक उत्तमोत्तम ग्रन्थ लिक्खे। इसके ग्रन्थों में "रोम और ग्रीसके प्रख्यात पुरुषोंका चरित्र" अति प्रसिद्धहै। बहुत वृद्ध होकर १४० ई॰ में इसकी मृत्यु हुई।