उसके शिखरपर आरूढ होकर अपने अनुयायी जनोंके कल्याणार्थ ईश्वरसे प्रार्थना करूंगा" इस अघटित घटनाको देखने के लिए लोग एकत्र हुए। मुहम्मदने बारंबार पहाड़ीको अपनी ओर आनेके लिए आह्वान किया परन्तु जब वह पहाड़ी अपने स्थानसे न हिली तब किंचिन्मात्र भी लज्जित न होकर उसने कहा कि "यदि पहाड़ी मुहम्मदके पास नहीं आती तो मुहम्मद स्वयंमेव पहाड़ी के पासजावैगा इसी भांति ये साहसी लोग जब जब बड़े बड़े कामकरनेका प्रणकरके अन्तमें फलीभूत नहीं होते तब तब अपने उपहासकी ओर लेशमात्रभी दृक्पात न करकै उसकामको छोंड अन्यकी ओर प्रवृत्त होतेहैं और ऐसा भाव बताते हैं जैसे कुछ हुवाही न हो।
यथार्थतः विचारशील मनुष्योंको, धृष्टलोगोंके काम देखकर, कौतुक होता है। यही नहीं किन्तु अप्रगल्भ और ग्राम्यजनोंकाभी धृष्टता कुछ कुछ हास्यास्पद जान पड़ती है। कारण यह है कि हँसी मूर्खताको देखकर आतीहै और धृष्टतामें थोड़ी बहुत मूर्खता अवश्यमेव रहतीही है; अतः साहसिकलोगोंके साहसको देखकर छोटे छोटे आदमीभी हंसैंगे इसमें सदेह नहीं। कामकाजमें विफलप्रयत्न होनेसे धृष्ट लोगोंकी जब हँसी होती है तब बड़ाआनन्द आता है। उस समय उनका मुख छोटा सा हो जाता है और उसपर कालिमां छा जाती है। ऐसा होनाही चाहिए, क्योंकि लज्जाके कारण मुखकी आभा चढा उतरा करती है। परन्तु ऐसे अवसरपर धृष्ट मनुष्य काष्ठवत् स्तब्ध रहते है; उनका उत्साह नहीं भंग होता। प्यादा यद्यपि बादशाहकी बराबरी नहीं करसकता तथापि शतरञ्जमें कभी कभी वह ऐसे घरमें पहुंच जाता है कि उसके कारण बादशाह अपने स्थानसे नहीं हटसकता, जहां का तहांही रहजाता है। बस, धृष्टलोगोंकी भी पराभवके समय ठीक यही दशा होती है। परन्तु इस प्रकार लोगोंकी मुखचर्याका निरीक्षण करके उसपर टीका करना अन्य विषयोंको छोड़ प्रहसन इत्यादिहीमें विशेष शोभा देता है।