बढ़कर उनका एक आध नौकर मिल जाता है। सैनिक सिपाही लोगोंकी यह बात है कि उनके अधिकारी सेनानायक युद्धमें पराक्रम दिखलानेके लिए उत्तेजित करनेके समय बहुधा उनको उनके स्त्री पुत्रादिहीका स्मरण दिलाते हैं। हमारी समझमें तुर्कलोगोंके नीच जातिवाले सिपाही जो पराक्रमी नहीं होते उसका यही कारण है कि वे लोग विवाह करना तुच्छ मानते हैं।
सत्य तो यह है कि स्त्री और लड़के वाले मनुष्यके लिए दया दाक्षिण्यादि गुणोंके शिक्षक समझने चाहिए। जिनका विवाह नहीं हुआ उनके यहां परिमित व्यय होनके कारण द्रव्यसञ्चय विशेष होता है; परन्तु, दयालुता और धार्मिकता जागृत होनेके जितने प्रसङ्ग स्त्री पुत्रादिके मध्य रहनेवाले कुटुम्बवत्सल मनुष्यको आते हैं उतने अविवाहित मनुष्यको नहीं आते। इसी लिए अविवाहित लोग अधिक निर्दय और पाषाणहृदय होते हैं।
जो मनुष्य स्वाभाविक गम्भीर होते हैं वे अपनीही स्त्रीमें रत रहते हैं और उसे विशेष प्रेम दृष्टिसे देखते हैं। यूलीस्पस[१] ऐसाही था। पतिव्रता स्त्रियां अपने शुद्धाचरणके बलपर बहुधा गर्विष्ठ और हठी होती हैं। जो लोग अपनी स्त्रियोंकी दृष्टि में बुद्धिमान जंच जाते हैं उनकी स्त्रियां सदैव उनके आधीन रहती हैं और उनको छोंड़ अन्यकी ओर दृक्पात तक नहीं करतीं। परन्तु स्त्रियां जब यह समझ जाती हैं कि हमारा पति हमारे विषयमें सशंक है तब कदापि वे उसे बुद्धिमान् नहीं मानतीं; अतः वे उसके वशीभूतभी नहीं रहतीं। मनुष्यके तरुणवयमें स्त्री गृहिणीका काम देती है, मध्यमवयमें
- ↑ यूलीस्पस ग्रीसमें इथाकाका राजाथा। इसने एक पत्नीव्रत तो न धारण कियाथा परन्तु अपनी पत्नी पिनिलोपपर अतिशय प्रेम रखता था। ग्रीसके पुरातन कवि होमरने ऑडेसी नामक काव्यमें इसका विस्तृत वर्णन किया है। ट्रायके युद्ध में भी यह विद्यमान् था। वहां बड़े बड़े पराक्रमके काम इसने किए हैं।