पृष्ठ:बेकन-विचाररत्नावली.djvu/७६

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(७१)
कार्यसाधन।


उससे वह काम समाप्त करा लेनेकी आशा करना विचार दृष्टि से योग्य नहीं दीखता। हां, ऐसी आशा उस दशामें की जासकती है जब वह काम ऐसा हो कि उसका पहिले ही समाप्त होजाना आवश्यक हो; अथवा काम करनेवालेको दूसरा मनुष्य इस बातका विश्वास दिला दे कि वह उसे और भी कोई काम देगा; अथवा काम लेनेवाला अपनी प्रामाणिकताका प्रमाण दे सकै। इन बातोंके अतिरिक्त किसीको यह नहीं कह सकते कि तुम इस कामको पहिले कर डालो; अनन्तर तुमको इसका पारितोषिक मिलेगा।

जितनी युक्तियां होती हैं वे सब मनुष्यकी योग्यता समझने अथवा उसके द्वारा कोई न कोई काम निकालनेहीके लिए प्रयोगमें लाई जाती हैं। विश्वासके काममें, क्रोधमें और असावधानतामें मनुष्य की योग्यताका पूरा पूरा ज्ञान होजाता है। इसके अतिरिक्त मनुष्य जब कोई ऐसा काम कर बैठता है जिसको उचित सिद्ध करनेके लिए उसे योग्य कारण नहीं ढूंढे मिलता तब भी उसकी परीक्षा हुए बिना नहीं रहती। जिससे कोई काम लेना है उसके स्वभाव और बर्ताव का भली भांति ज्ञान होना चाहिये, जिसमें अभीष्टसाधनकी ओर उसे आकृष्ट करसकैं; अथवा उसका आशय समझना चाहिए, जिसमें समझा बुझाकर उसके मनमें उसीका सा भाव दृढ़कर सकैं; अथवा उसकी न्यूनता और व्यंग्य समझमें आजाने चाहिए, जिसमें उसे डरा सकैं; अथवा उसके इष्ट मित्रों के नाम विदित होने चाहिये,जिसमें उनके द्वारा उसपर बल प्रयोग कर सकें।

कपटी और धूर्त लोगोंके साथ व्यवहार करनेमें उनकी बातचीतका ठीक अर्थ जाननेके लिए उनके इष्ट हेतुके समझनेका प्रयत्न करना चाहिए। उनसे जितना कम बोले उतनाही अच्छा है; बोले भी तो ऐसे विषय में बोले जिससे उनका बहुतही थोडा सम्बन्ध हो।