करले उसको उचित है कि वह न तो बहुत बड़े बड़े काम करनेको उद्यत हो और न बहुत छोटेही छोटे करनेको उद्यत हो। कारण यह है कि, बहुत बड़े बड़े कामोंमें अनेक विघ्न होनेसे उत्साह जाता रहता है; और छोटे छोटे कामोंमें यद्यपि प्रायः सिद्धि होती है तथापि बढकर हाथ मारनेको नहीं मिलता।
तैरना सीखनेवाले जैसे पहिले तुम्बे अथवा घड़े इत्यादिकी सहायतासे तैरना आरम्भ करते हैं वैसे ही मनुष्यको किसी बातका अभ्यास करना हो तो दूसरेकी सहायतासे करना उचित है। परन्तु कालान्तरमें प्रतिकूल वस्तुओंके साहाय्यसे अभ्यासक्रम बढाना चाहिये। इसका यह कारण है कि सामान्य रीतिसे जो काम किया जाता है तदपेक्षा यदि कुछ कठिनतासे उस के करनेका अभ्यास होजाता है तो मनुष्यमें प्रवीणता अधिक आती है।
स्वभाव अति उद्दाम होनेसे उसको वशीभूत करनेमें बड़ी कठिनता पड़ती है; अतएव ऐसे स्वभावको क्रमक्रमसे अपने वशमें लाना चाहिए। क्रोध आनेपर मनुष्यको जैसे २४ तक गिनती गिनकर तब कोई काम करना चाहिए, उसीप्रकार स्वभावको रोंककर कुछ देर ठहर जाना चाहिए। यह पहला क्रम है। बहुत मद्य पीनेवालोंको जैसे पीना कम करते२ भोजनके समय केवल एक आध प्याला तक पहुँचकर अन्तमें उसे बन्द करदेना चाहिए उसीप्रकार स्वभावको धीरे धीरे छोड़ना चाहिए। यह दूसारा क्रम है। यदि किसीमें इतना दृढ़ निश्चय और धैर्य हो कि वह अपने दुःस्वभावको तत्कालही छोड़सकै तो और भी अच्छा है। जैसे छड़ी एक ओरसे यदि टेढ़ी हुई तो दूसरी ओर भी टेढ़ी करके उसे सीधी करते हैं वैसेही विरुद्ध आचरणद्वारा स्वभाव को ठिकाने लाना चाहिए। यह प्राचीन लोगोंका नियम है। यह भी बुरा नहीं; परन्तु स्मरण रहै कि विरुद्धाचरण अनीतियुक्त न होना चाहिए।