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द्रव्य।


सबसे उत्तम बात यह है कि, उनको उसमें नितान्त आसक्त न हो जाना चाहिये और जीवनके सद्व्यवसाय और महत्त्वके कामोंमें उससे लेशमात्र भी सम्बन्ध न रखना चाहिए; क्योंकि, काम काज से उसका सम्बन्ध होनेसे अर्थात् विषयमें रत होनेके कारण सत्कार्योंका प्रतिबन्ध होनेसे—मनुष्यको द्रव्यकी हानि उठानी पडती है और तदतिरिक्त कर्तव्य कर्मकी सिद्धि भी नहीं होती। हम नहीं जानते शूर वीर लोग क्यों कामजन्य प्रेमके वशीभूत होजाते हैं? साहसके कामकरनेके अनन्तर मद्यप्राशन के समान, सुख भोगमें प्रवृत्तहोनेकी इच्छा स्यात् उनको होती होगी।

मनुष्योंके मनकी प्रवृत्ति स्वभावहीसे दूसरोंपर प्रीति करनेकी ओर झुकती है। इस प्रेमप्रवृत्तिका प्रयोग किसी एक मनुष्य अथवा एक नहीं दो चार मनुष्योंके ऊपर यदि न कियागया तो प्रेमका वेग अधिकाधिक बढकर दूरदूरतक फैल जाता है। प्रेमाधिक्यहीके कारण मनुष्य दयाशील और दानी होते हैं; यह बात हम लोग साधुजनोंमें प्रतिदिन देखते हैं। दाम्पत्य अर्थात् स्त्रीपुरुषसम्बन्धी प्रेमसे मानवजातिकी उत्पत्ति होती है; मित्रता सम्बन्धी प्रेमसे उस मानवजातिकी पूर्णता होती है; और कामजन्य प्रेमसे उसकी दुर्दशा होती है।


द्रव्य २१.

अनुभवत[] ददत वित्तं मान्यान्मानयत सज्जनान्भजत।
अतिपरुषपवनविलुलितदीपशिखा चश्चला लक्ष्मीः॥

सुभाषितरत्नाकर।

दाना, चारा, छोलदारी इत्यादि कमसरियटके झगड़े जैसे सैन्य की गतिके प्रतिबन्धक होते हैं वैसेही सम्पत्ति भी सद्गुणवृद्धिकी


  1. धन पाकर उसका उपभोग करो उसका दान करो; मान्यजनोंका सम्मान करो; सज्जनोंकी सेवा करो;—स्मरण रहे कि, यह लक्ष्मी बडेवेगवाले पवनसे चलायमान दीपशिखा के समान चञ्चला है।