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बेकन-विचाररत्नावली।


शीघ्र पातेहैं; आरम्भ किये गये कार्यका अन्त किये बिनाही उसे बहुधा छोड़ देते हैं; और थोड़ीही सिद्धिसे समाधान मानतेहैं। अतएव युवा और जरठ दोनों अवस्था के मनुष्योंसे काम लेना सर्वोत्तम हैं। ऐसा करनेसे वर्त्तमान और भविष्यत् दोनों कालमें लाभ होगा; क्योंकि तरुणों की न्यूनता वृद्ध और वृद्धोंकी न्यूनता तरुण परिपूर्ण करैंगे, तथा वृद्धों से तरुण जन काम सीखकर आगे के लिए चतुर भी होजावेंगे। दोनों अवस्थावालों के मेल से वृद्धों की ओर अधिकार और तरुणों की ओर लोकप्रियता रहती है; इसलिए आकस्मिक विघ्नों से कार्य में व्याघात नहीं आता। व्यवहार शास्त्र में वृद्ध विशेष आस्था व्यक्त करते हैं। लिखाहै कि "तुम्हारे तरुणजनों को दृष्टान्त और वृद्ध जनों को स्वप्न देख पड़ैंगे"। इस वाक्य से यहूदी जाति का एक महात्मा यह अनुमान करता है कि वृद्धों की अपेक्षा तरुण ईश्वर के अधिक सन्निकट हैं; क्योंकि स्वप्न से दृष्टान्त अधिक स्पष्ट होताहै। सत्यहै; मनुष्य को संसार का जितनाही अधिक अनुभव होताहै उतनाही विषय उसे अधिक मत्त करदेते हैं; अतएव यह सिद्ध है कि सद्वासना और प्रेमकी अपेक्षा सारासार विचारशक्ति को जरा विशेष वृद्धिंगत करती है।

कुछ लोग थोड़ेही वय में वयोवृद्ध जनों के समान पारिपक्वबुद्धिके होजाते हैं। उनकी बुद्धि का विकास वयस्क होने पर संकुचित होजाता है। इस प्रकार का मनुष्य रोम में हारमोजीनियस[१] नामक अलंकारशास्त्रवेत्ता होगया है; तत्कृत ग्रन्थ बहुतही उत्कृष्ट हैं; परन्तु अधिक वयमें उसकी बुद्धि कुंठित होगई थी। किसी किसीमें अस्खलित और मोहकभाषणके समान कोई २ ऐसे स्वाभाविकगुण होते हैं जो वृद्धावस्थाकी अपेक्षा


  1. हारमोजीनियस दूसरी शताब्दी में हुवाहै। मरणोत्तर इसके शव की परीक्षा करते समय यह देखागया कि इसके विशाल हृदय के उपर केश उग आएथे। २५ वर्ष के वयमें इसकी स्मरणशक्ति जाती रहीथी।