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बेकन विचाररत्नावली।


सबसे जो छोटे हैं उनका लाड़ प्यार होता है; परन्तु मझले लड़कों को कोई पूँछता भी नहीं। तथापि यही मझले लड़के वयस्क होने पर बहुधा समाज में गणनीय और माननीय होते हैं।

उचित कार्य में उठाने के लिये लड़कों को पैसा देने में माता पिता को कार्पण्य न करना चाहिये। कार्पण्य करने से अनेक अनिष्ट होते हैं। पैसा न पाने के कारण लड़के दुर्वृत्त होजाते हैं; अपहरण करना सीख जाते हैं; नीच लोगों के साथ उठने बैठने लगते हैं; और रुपया पैसा पाने पर अत्यन्त उच्छृखलता धारणपूर्वक विषयासक्त होजाते हैं। अतएव माता पिता को अपनी सन्तति के ऊपर दृष्टि रखनी चाहिये यह सत्य है, तथापि बाल्यस्वभावसुलभ उनके मनोरथ पूर्ण करने के लिये पैसे की भी, उपाय भर, उन्हें कमी न पड़ने देना चाहिये। यही उत्तम मार्ग है।

बाल्यावस्था में माता, पिता, शिक्षक अथवा सेवक लोग बहुधा भाई भाई में परस्पर की स्पर्धा उत्पन्न करदेते हैं और उसे उत्तेजित भी करते रहते हैं। यह भारी भूलहै। इससे भ्रातृस्नेह में त्रुटि आती है और लड़कों के बड़े होनेपर गृह-विच्छेद होनेका बीज उत्पन्न हो जाता है। इटली के निवासी अपने लड़कों में, अपने भतीजों में अथवा अपने निकटवर्ती संबन्धी जनों के लड़कों में बहुत कम भेदभाव रखते हैं। वे सब लड़के एकही कुटुंब के मात्र होने चाहिये; एक कोख के होने अथवा न होने का विचार वह कुछ भी नहीं करते। यही नियम प्राकृतिक जान पड़ता है, क्योंकि हम देखते हैं कभी २ लड़के अपने माता पिता के अनुरूप न होकर अपने चचा अथवा अपने किसी और निकट संबन्धी के समान होते हैं।

बाल्यकालही में अपने लड़कों के लिये अभिमतवृत्ति और व्यवसाय का निश्चय करके माता पिताको तभी से तदनुसार शिक्षा प्रारंभ करनी चाहिये; कारण यह है, कि उससमय लड़कों की प्रकृति अति कोमल होतीहै; अतः इच्छानुकूल विषय कीओर विशेष क्लेशके बिनाही वह प्रवृत्त