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संतान।}(२९)


आनन्द का उल्लेख स्पष्ट रीति पर नहीं करसकते; और खेद तथा भय को भी सब से नहीं प्रकाशित करसकते। सन्तति के कारण संसार यात्रा के श्रम विशेष आयास—कर नहीं जान पड़ते; परन्तु उसके कारण विपत्ति अवश्य असह्य होजाती है। लड़के बाले होने से सांसारिक चिन्ता बढ़ती है; परन्तु उनको देखकर मृत्यु का भय कम होजाता है। सन्तति को उत्पन्न करके वंश वृद्धि पशु भी करते हैं; परन्तु सद्गुण और सत्कार्य इत्यादि सम्पादन करना मनुष्यही का काम है। हम देखते हैं, कि जिनके सन्तान है उनकी अपेक्षा निःसन्तान मनुष्य विशेष उदारता दिखाते हैं, और अधिकतर महत्कार्यों का आरम्भ करने में समर्थ होते हैं। इसका यह कारण बोध होता है, कि ऐसे ऐसे पुरुष सन्ततिरूपी अपने शरीर का प्रतिबिम्ब प्रतिफलित करने में असमर्थ होने से अनेक यशःप्रद और चिरस्मरणीय कृत्य रूपी अपने अन्तःकरण के प्रतिबिम्ब को प्रकाशित करके लोकान्तरित होते हैं। अतएव यह कहना चाहिये, कि जिनके आगे कोई नहीं है उनको आगे की अधिक चिन्ता रहती है। जो लोग अपने घराने में प्रथमही प्रथम नामांकित होते हैं वे अपने लड़कों का अत्यधिक प्यार करते हैं; वे समझते हैं कि हमारे पश्चात् ये लड़के हमारी वंशपरम्परा को भी चलावैंगे और साथही जो नाम हमने सम्पादन किया है उसे भी चिरायु रक्खैंगे।

कई लड़के होने से माता पिता का स्नेह सब पर समान नहीं होता। यही नहीं किन्तु कभी कभी स्नेह का स्वरूप भी अनुचित होजाता है। प्रेम प्रकाश करने में माता विशेष पक्षपात करती है। सालोमन ने कहा है कि "बुद्धिमान पुत्र पिता को प्रसन्न करता है और दुराचारी पुत्र माता को लज्जित करता है" जिसका यह तात्पर्य है कि पिता के यत्न से पुत्र विद्वान् होता है और माता के अनुचित लालन से वह दुर्वृत्त होजाता है। जहां बहुत लड़के होते हैं वहां देखते हैं कि एक दो जो बड़े हैं उनका तो आदर होता है; और