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बेकन-विचाररत्नावली।


ऐसी बात बहुत शोच विचार कर कहनी चाहिये। भाषण एक विस्तृत मैदान के समान है; उसका सम्बन्ध किसी एक व्यक्तिसे नहीं है।

अस्खलित वक्तृत्व की अपेक्षा सदसद्विचारयुक्त भाषणका माहात्म्य अधिक है; और सुसंगत और रमणीय भाषण की अपेक्षा जिससे बोलते हैं उसे अच्छालगनेवाले भाषणका माहात्म्य अधिक है। जिसे अस्खलित और मनोहर भाषण करना आता है, परन्तु प्रतिपक्षी के द्वारा किसी शंकाकी उद्भावना होनेपर, तान्नराकरण विषयमें अच्छा बोलना नहीं आता, उसका भाषण बुद्धिमांद्यबोधक समझना चाहिये। उसी भाँति जिसे शंका समाधान तो अच्छेप्रकार करना आताहै, परन्तु पूर्वपक्षनिरूपक विशदभाषण करना नहीं आता, उसका भाषण अल्पज्ञता और असमर्थता सूचक जानना चाहिये। यह बात पशुओंमें भी पाईजातीहै। जो दौड़नेमें प्रवीण नहीं हैं वे कैंची काटनेमें कुशल हैं। उदाहरणार्थ शिकारी कुत्ता और खरगोश।

मुख्य विषयका प्रारम्भ करनेके पहिले अनेक बातोंका उल्लेख करके लम्बी प्रस्तावना कहना रोचक नहीं होता; परन्तु नितान्त न कहनाभी अच्छा नहीं लगता।


संशय १०.

नोविश्वासाद्विन्दतेऽर्थानीहन्ते[] नापि किंचन।
भयाद्येकतरान्नित्यं मृतकल्पा भवन्ति च॥

महाभारत.

सायंकाल-अर्थात् जिस समय कुछ अन्धकार और कुछ प्रकाश रहता है—जैसे चिमगादड़ अपने रहनेके वृक्षको छोड़ इतस्ततः उडने लगते हैं वैसेही जिस मनुष्य में ज्ञानका प्रकाश और अज्ञान का


  1. अविश्वाससे अर्थ की प्राप्ति नहीं होसकती, और जो हो भी सकती है तो जो विश्वासपात्र नहीं है उससे कुछ लेने को जी ही नहीं चाहता; अविश्वास के कारण सदा भय लगा रहता है, और भय से जीवित मनुष्य मृतक के समान खो जाता है।