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त्वरा।


शीघ्रता करते देख वह बहुधा यह कहा करता था "भाई किंचित् ठहरिये, जिसमें कार्य शीघ्र समाप्त होजावे"।

परन्तु आवश्यकत्वरा एक अनमोल पदार्थ है। वस्तुमात्रकी योग्यता जैसे पैसेसे समझीजाती है वैसेही कामकी योग्यता समयसे समझीजाती है। इसीसे जिस कामके करने में विलम्ब लगता है वह महँगा पड़ता है। स्पार्टा और स्पेनके रहनेवाले काममें कभी त्वरा नहीं करते। अतएव यह कहावत प्रसिद्ध होगई है कि "हमारा मृत्यु स्पेनसे आवे तो अच्छा है"; क्योंकि, यदि वहांसे आवेगा तो अवश्येमव देरमें आवेगा।

जो मनुष्य काम काजकी प्रथम सूचना देता है उसके कहनेको भलीभाँति सुनो। यदि तुम्हें उसको कुछ कहना है तो पहिलेहीसे कह रक्खो; बीचमें उसे मत छेड़ो; क्योंकि, जो जिस बातको जिस रीतिसे कह रहा है उसे वैसे न कहने देनेसे वह गड़बड़ा जाता है और कहनेके विषयको भूल जाता है। ऐसा होनेसे उसकी बात अच्छी नहीं लगती। परन्तु बीचमें न छेड़कर यदि उसे अपने प्रकार पर अपनी बात कहने दोगे तो ऐसा कदापि न होगा। तथापि यह सत्य है कि, कभी कभी नटकी अपेक्षा सूत्रधारके वाक्य श्रवण करनेमें जी अधिक ऊब जाता है।

एकही बातको बार बार कहनेसे समय वृथा नष्ट होता है परन्तु जो विषय चला है उस विषयके सम्बन्धमें पुनरुक्ति करने से समय उलटा बचता है; क्योंकि मुख्य प्रश्न की ओर ध्यान दिलाने से निरर्थक वार्त्तालाप करने का स्वभाव छूट जाता है। त्वरा के काममें लम्बे लम्बे और अलंकृत भाषण उतनीही योग्यता के समझने चाहिये जितनी योग्यताके चोगे और पैरतक लटकने वाले घोड़ोंके चारजामें घुड़दौड़में समझे जाते हैं। भाषणके आरम्भ में प्रस्तावना करना, प्रमाण देना, क्षमा माँगना अथवा औरों के कथन का उदाहरण देनासमयको निरर्थक नष्ट करना है। यद्यपि उस समय