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बेंकन-विचाररत्नावली।


परभी सुगन्ध देने वाले चन्दन वृक्षके समान समझना चाहिए। यदि वह दूसरोंके अपराध सहजही क्षमा कर देता है तो वह यह सूचित करता है कि उसका मन अपकार ग्रहण करने की सीमाका अतिक्रमण करगया है। यदि अत्यल्प उपकारक लिए भी वह कृतज्ञता व्यक्त करता है, तो उससे यह विदित होता है कि वह मनुष्यकी मनोनिष्टा देखता है उसके उपकारका परिमाण नहीं देखता। और सबसे अधिक यदि वह महात्मा सेन्टपालके समान, जन समुदायके हितार्थ अपना आत्मा भी अर्पण करने के लिए सिद्ध रहता है तो यह समझना चाहिए कि उसमें ऐश्वरीय अंश विशेष हैं, अंशही नहीं, किन्तु यों कहना चाहिए कि उसमें एक प्रकार का ऐश्वरीय सादृश्य है।