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सौजन्य और परोपकार।


स्वभाव इन लोगों का नहीं होता। इनका स्वभाव मक्खियों का सा होताहै। ब्रणको देखकर जैसे मक्खियों के झुंड के झुंड उसकी ओर चलते हैं, वैसेही आपत्ति में पड़ेहुए मनुष्य को देख, उसे उससे भी अधिक दुःखित करने के लिए ये लोग दौड़ धूप करना आरम्भ करते हैं। इसप्रकार के दुःशील लोग यह सब कुछ करैंगे, परन्तु यदि कोई इनसे यह कहै कि अपने वृक्षकी डालीमें फांसी लगाकर हमैं मरही जाने दो, तो टिमोन[१] के समान ये अपनी डालीभी किसीके उपयोगमें न आने देंगे। ऐसे ऐसे स्वभाववाले मनुष्योंको उत्पन्न करना ब्रह्मदेव की भूलहै। तथापि राजकीय कामोंमें इस प्रकारके मनुष्य विशेष उपयोगी होते हैं। कोई कोई लकड़ी ऐसी होती है कि वह छतका भार नहीं सहनकर सकती इसलिए घरबनानेके काममें नहीं आती; परन्तु जहां समुद्र के गगनभेदी तरंगोंके आघात सहन करना पड़तेहैं वहां–अर्थात् धूमपोत और नौकाओंमें उसी लकड़ीका प्रयोग होता है। यह उदाहरण दुष्ट प्रकृति लोगोंके लिए समान रीतिपर चरितार्थ हो सकता है।

सौजन्यके कई चिह्न हैं; उसके भेदभी कई हैं। यदि मनुष्य अपरिचित्तजनोंको कृपादृष्टिसे देखता है और उनका आदर सत्कार करता है, तो मानो समस्त भूमंडलको वह अपनाहीं देश और समस्त मानव जातिको अपनाही कुटुम्बी जानता है। अर्थात् जिस भांति भूमिसे एक आध भूमिका भाग पृथक् होकर द्वीप होजाता है, उस भांति वह अपना मन मानवजातिसे पृथक् नहीं समझता। दूसरोंको दुःखित देख यादि उसका हृदय दयार्द्र होजाता है तो उसको–काटने


  1. एथन्स नगर में एक मनुष्य टिमोन नामी होगयाहै वह मनुष्य मात्र का द्वेष्टाथा। एक बार उसने यह घोषणादी कि, "मेरी वाटिका में एक गूलर का वृक्ष है, जिसकी डालों से लटक लटककर, आजतक अनेक लोगोंने प्राण त्याग किएहैं; अब मैं उसे कटाना चाहताहूं, अतः जिसे मरना हो वह शीघ्रही वहां जाकर प्राणान्त करे"।