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बेकन-विचाररत्नावली।


अथवा चाहै ऐसेही और कुछहो। कुछपै कुछ स्वार्थ रहताहीहै। तब हमारी अपेक्षा अपना हित साधनके लिये किसीको विशेष तत्पर रहते देख हमें बुरा क्यों मानना चाहिये? परन्तु यदि दुष्टप्रकृति होनेहीके कारण बिना किसी उद्देशके कोई किसी का अनिष्ट करै तो भी बुरा न मानना चाहिये, क्योंकि दूसरोंका अपकार करना उसका स्वाभाविक धर्मही है। काँटोंसे यदि शरीर चुभ अथवा खुरच गया तो क्या किसीको क्रोध आताहै? नहीं; चुभ जाना और खुरचना काँटोंका जन्म स्वभावही है। ऐसे अपराध जिनके लिये नीतिशास्त्रमें कोई दंडविधान नहीं किया गया उनका बदला लेना किसी भाँति मान्य कहा जासकता हैं? परन्तु बदला लेनेके पहिले मनुष्यको निश्चय कर लेना चाहिये कि, यथार्थमें इस अपराधके ऊपर नीतिकी सत्ता नहीं चल सकती; नहीं तो एकके स्थानमें उसे दो शत्रुओंका सामना करना पड़ैगा। एक तो अपकार करनेवालेका और दूसरा विधि शास्त्रका। कोई कोई मनुष्य बदला लेनमें अपने प्रतिपक्षीको किसी न किसी प्रकार विदित करदेते हैं कि, अमुक व्यक्तिने अमुक बातके लिये उससे बदला लिया। ऐसे व्यवहार में विशेष उदारता व्यक्त होती है, क्योंकि इसमें प्रतिपक्षी का अहित करके आनन्द माननेकी अपेक्षा उसको पश्चात्ताप पहुँचानेका हेतु अधिक रहता है। परन्तु नीच और भीरु मनुष्य अन्धकारमें बाणप्रहार करनेके समान छिपके बदला लेते हैं।

फ्लारेन्सके कास्मस नामक ड्यूकने अविश्वासपात्र और समयपर सहायता न करनेवाले मित्रोंके विषयमें बहुत कठोर वाक्य कहे हैं। उसके मतानुसार मित्रकृत अपराधोंकी क्षमा होही नहीं सकती। उसका यह कथन है कि, शत्रुओंको क्षमा करनेके विषयका आधार मिलता है परन्तु मित्रोंको क्षमा करनेके विषयका आधार नहीं मिलता। परन्तु जाब नामक महात्माका कहना इतना अप्रशस्त नहीं है। वह कहताहै कि ईश्वरके दियेहुए सुखका जब हम अनुभव करते हैं तब