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बेंकन-विचाररत्नावली।


नीहीं पुरानी प्रथाको हठपूर्वक प्रचलित रखने से होती है। यही कारण है कि जो पुरानी रीति भांतिके अतिशय पक्षपाती होते हैं उनका नए समयमें उपहास होता है। अतः मनुष्योंको चाहिए, कि जब वे कोई नई चालढाल निकालना चाहैं, तब समय की और अवश्य ध्यान रक्खैं। समय सदैव नया होता जाता है और अपने साथही नई नई प्रथायेंभी लाता है। समय के साथ साथ जो प्रथायें आती हैं वे, चुपचाप, कम कमसे आती हैं। उनका आना किसीके ध्यान में भी नहीं आता। नई नई बातोंके प्रचारके लिए समयपर निर्भर न रहकर उनको व्यवहारमें बलात् प्रविष्ट करना अच्छा नहीं; क्योंकि नई नई बातोंको अंगीकार करनेके लिए स्वभावहीसे मनुष्य प्रस्तुत नहीं रहते। उनके प्रचलित होनसे, यदि अनेकोंको लाभ होता है तो अनेकोंको हानि भी होतीहै। जिसको लाभ होता है, वह अपना सौभाग्य समझता है और समयको धन्यवाद देता है। परन्तु जिसको हानि होती है, वह समझता है कि उसे अकारण दंड हुआ और नवीन प्रथाके प्रचलित करनेवाले को गालियां देता है।

यदि नई नई प्रथाओंके प्रचलित करनेकी अतिशय आवश्यकता न हो, और यदि उनके प्रचलित होनसे निश्चित रूपमें लाभ होनेके लक्षण स्पष्ट न दिखलाई देते हों, तो, उनको केवल परीक्षाके लिए प्रविष्ट करनेका प्रयत्न न करना चाहिए। यदि नई प्रथायें प्रचलित करनी ही पड़ैं, तो यह सिद्ध करके दिखलाना चाहिए कि तत्कालीन प्रणालीके अनुसार उनका व्यवहार में लायाजाना अत्यावश्यक है। किसीको यह न भास होने पावै कि नई नई प्रथाओंको प्रचलित करनेहीं की इच्छासे परिवर्तन किया गया है इस विषयमें सदैव सावधान रहना चाहिए। एक बात यह और स्मरण रखनी चाहिए कि किसी नई चालको लोगोंने अमान्य नभी किया तो भी, उनको उस विषयमें संशय उत्पन्न होनेका अवसर न मिलने देना चाहिए। धर्म्म