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प्रवास।


होगी। इस प्रकारके सदनुष्ठान से थोड़ेही समय मे बहुत लाभ होगा।

अब यह देखना है कि प्रवास में किस किस का समागम श्रेयस्कर होता है। अन्य देशीय राजाओं के वकील, दूत और कामदार इत्यादिकों से परिचय करना बहुतही लाभदायक है। इन लोगों के परिचय से एक देशमें प्रवास करके अनेक देशों का ज्ञान सहजही होजाता है। इसी प्रकार, जो लोग देशदेशान्तर में प्रख्यात हों उनसे भी मिलना और वार्त्तालाप करना चाहिए। ऐसा करने से मनुष्य को यह विदित हो जायगा कि जैसा उनका नाम है तदनुरूप उनका चरित भी है अथवा नहीं।

सुविचार और सुयुक्ति का व्यवहार करके लड़ाई झगड़े जहां तक टलैं टालने चाहिए। ... ... .... ...। कलह प्रिय और पित्त प्रकृति मनुष्यों की संगति से दूर रहना चाहिए। ऐसे मनुष्य प्रवासी के साथ बहुधा, व्यर्थ कलह करने लगते हैं। इनसे सावधान रहना चाहिए।

प्रवास से प्रत्यागमन करके, जिन जिन देशों को देखाहो उनको भूल न जाना चाहिए। विदेश में जिनसे परिचय होगया हो, उनमें से जो सबसे अधिक प्रतिष्ठित हों उनसे पत्र व्यवहार रखना चाहिए। विदेशी हाव भाव और वेषभूषण ग्रहण करके, अपने प्रवास की साक्षी न देनी चाहिये किन्तु वार्त्तालाप ऐसा करना चाहिए जिससे लोग समझजावें कि इसने प्रवास किया है। बिना पूंछे, अपने मुखसे अपने प्रवासकी कथा न कहनी चाहिये; परन्तु जब कोई उस विषयमें कुछ पूंछै तो यथोचित उत्तर देना चाहिए। वर्ताव इस प्रकारका रखना उचित है जिससे कोई यह न समझे कि इसने अपनी चाल ढाल छोड़ विदेशकी चाल ढाल स्वीकारकी हैं, किन्तु यह समझे कि विदेशमें जो कुछ उपादेय और उत्तम है उसे, अपने देशमें प्रचलित करनेकी इच्छासे इसने ग्रहण किया है।