अत्यन्त सद्गुणी मनुष्य का अभ्युदय होते देख लोग कम मत्सर करते हैं, क्यों कि वे अपने मन में यह समझते हैं कि यह व्यक्ति इस सन्मान का पात्र है। ऋणपरिशोध करने से कोई किसी का मत्सर नहीं करता; परन्तु उदारता पूर्वक किसी को कुछ देते देख मनुष्य मत्सर करने लगते हैं। जिन दो व्यक्तियों की परस्पर तुलना नहीं हो सकती उनमें मत्सर भी कभी जागृत नहीं होता। अतः जहां कहीं मत्सर भाव दृग्गोचर होगा वहां सभ्यता अवश्य होगी। इसीसे राजा लोगों का मत्सर राजेही करते हैं, अन्य नहीं। यह भी स्मरण रखना चाहिए कि योग्यताहीन पुरुषों का जब सहसा अभ्युदय होजाताहै, तब, वे, पहिले पहल, उत्कट असूया भाजन बनजाते हैं, परन्तु कुछ काल के अनन्तर, लोग, उनको मत्सर दृष्टि से देखना बन्द कर देते हैं। उनके विषयमें, उस समय, सब से अधिक असूया उत्पन्न होती है, जब लोग उनको चिरकाल पर्य्यन्त अविच्छिन्न रूप से अपने वैभव को भोग करते देखते है। यद्यपि उनके गुण जैसे के तैसे बने रहते हैं, तथापि उनकी दीप्ति मे अन्तर पड़ जाताहै, क्यों कि नएनए मनुष्यों का उदय होने से पुरानों की कीर्ति मलिन होजाती है।
उच्चकुल के लोगोंका जब भाग्योदय होता है, तब, मनुष्य, उनका विशेष मत्सर नहीं करते। कुलीन पुरुषोंकी प्रतिष्ठा होनाहीं वे उचित समझते हैं। प्रतिष्ठित घराने के लोगोंके विषयमें असूया उत्पन्न न होनेका एक और भी कारण है। वह यह है कि उनके अभ्युदय होनेसे भी उनकी प्रतिष्ठा कुछ बहुत नहीं बढ़जाती। मत्सरकी उपमा सूर्यको किरणोंसे दी जा सकती है। जैसे सूर्यको किरणैं मिट्टीके एक धुस्स अथवा पृथ्वीके एक ऊंचे भागपर जितनी प्रखरतासे पड़ती हैं, उतनी प्रखरतासे समतल भूमि पर नहीं पड़तीं; वैसेही