है; परन्तु मित्रके लिये किसी सम्बन्ध की अपेक्षा नहीं होती। समयानुकूल जैसा चाहिए वैसाही वह बोल सकता है। कहांतक कहैं; ऐसी अनेक बातैं हैं। सभीका समावेश करनेसे पार पाना दुस्तर होगा। यहांपर हमने एक नियम मात्र कह दिया, कि किस प्रकार मनुष्य, मित्रकी सहायताके बिना अपने काम नहीं कर सकता। यदि मनुष्यके मित्र नहीं है, तो उसे चाहिए, कि इस संसाररूपी रंगभूमि से वह निकल जावै।
अहो[१] सहन्ते बत नो परोदयं
निसर्गतोऽन्तर्मलिना ह्यसाधवः।
स्फुट।
जितने मनोविकार हैं, सब में, प्रेम और मत्सर के समान मोहक और कोई मनोविकार नहीं। इनकी अभिलषित भावनाएँ बडी हीप्रबल होती हैं। ये दोनों मनोविकार, अति शीघ्र, कल्पना और भावना के घोड़े दौड़ाने लगते हैं। नेत्रों में इनका आविर्भाव होते देरही नहीं लगती। जब कोई स्पृहणीय और मनोहर बात दृग्गोचर होती है तब ये दोनों विकार विशेष त्वरा के साथ प्रकट होते हैं। धर्म ग्रन्थों में मत्सर को वक्रदृष्टि के नाम से उल्लेख किया है। अनिष्ट ग्रहों का योग आने से, ज्योतिषी लोग भी कहते हैं। कि अमुक अमुक ग्रह की वक्रदृष्टि है। अभी तक लोगों की यह समझ है कि मत्सर उत्पन्न होनेसे दृष्टि लगजाती है। किसी किसी का यह भी मत है कि अभ्युदय और विजय प्राप्त होने से मात्सर्य्यदृष्टि विशेष हानि पहुँचाती है; क्यों कि, उस दशामें मत्सर को और भी
- ↑ स्वभावही से जिनका अन्तःकरण मलिन होरहा है ऐसे असच्चरित्र लोग दूसरे का अभ्युदय नहीं सहन कर सकते।