प्रकाश मिलता है वह अपने निज के ज्ञान और सदसद्विचार रूपी प्रकाश से अधिक शुद्ध और विमल होताहै। इसका यह कारण है कि अपनी बुद्धि के प्रकाश में अपने मनोविकार और स्वाभाविकदोष मिले रहते हैं। यह बात दूसरेसे प्राप्त हुए परामर्श रूपी प्रकाश में नहीं होती। अतएव मित्रसे जो परामर्श मिलता है, उसमें और स्वतः के परामर्श में उतनाहीं अन्तर है जितना मित्र और मिष्टभाषी किसी चाटुकार के परामर्श में अन्तर होता है। स्मरण रखना चाहिये कि मनुष्य के लिये अपनी अपेक्षा अधिक और कोई चाटुकार नहीं, और अपने चाटुकार रूपी रोग को दूर करनेके लिये, स्पष्टवक्ता मित्र के अतिरिक्त दूसरी और कोई औषधि नहीं।
परामर्श (सलाह-मसलहत) दो प्रकार का है। एक चलन वलन सम्बन्धी; दूसरा कर्तव्यकर्म्म सम्बन्धी। चलन वलन सम्बन्धी परामर्श का पहले विचार करैंगे।
मनको कुमार्गमें जानेसे रक्षित रखनेके लिये सच्चे मित्र के वाग्दण्ड के समान और औषध नहीं। अपने आपही, अपने कार्यों की आलोचना करके, मनको ऊंचा नीचा सुझाना भी वैसीही औषधि है, परन्तु उसका प्रयोग हृदय को बहुधा विशेष पीडा और आघात पहुँचाता है। नीति विषयक ग्रन्थों का अवलोकन करने से भी मनुष्य की मानसिकवृत्ति नहीं बिगडती; परन्तु इस प्रकार के ग्रन्थों के पढ़ने में जी नहीं लगता। अपने सदृश दोषों का परिणाम यदि दूसरों में देखना चाहैं, तो वह भी कभी अयोग्य समझा जाता है। अतः मित्रकृत वाग्दंड के समान, इस विषय में, अन्य उपाय नहीं; उसका गुण भी उत्तम है और वह स्वयं ग्रहण करने में भी उत्तम है–क्लेशकर नहीं। अनेक मनुष्यों को–विशेष करके बड़े बड़े लोगों को–महान् प्रमाद और उपहासास्पद बातों को करते देख आश्चर्य होता है। ऐसे ऐसे प्रमाद और असंगत बातोंके कारण