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मैत्री।

मनो विकार अनावर होने पर मैत्री के योगसे मन स्वस्थ होता हैं। मैत्रीका यह प्रथमः फल हैं। मैत्रीका दूसरा फल यह है, कि उसके योगसे बुद्धि को निरोगता आती है, बुद्धि के विकारों को दूर करने के लिए वह अव्यर्थ महौषधि है। जिस प्रकार मनोविकारों के उच्छृखल होने से, मैत्रीका साहाय्य पाकर मन शान्त होता है, वैसे ही नानाप्रकारके भले बुरे विचारों में निमग्न होनसे, बुद्धि के ऊपर छायाहुवा अन्धकार भी मैत्री के योग से जाता रहता है। यह न समझना चाहिये, कि मित्र के द्वारा उचित उपदेश मिलनेसे ऐसाहोता है; नहीं उपदेश मिलनेके पहलेही बुद्धिका अज्ञानपटल नाश होजाताहै। जिसका मन नाना प्रकार के विचारोंसे भर जाता है, वह जब दूसरे मनुष्य से भाषण करने लगता है और अपने मनकी बातैं कहने लगता है, तब उसकी विकल हुई बुद्धि और विचार शक्ति शुद्ध होने लगती हैं। उस समय वह अपने विचारों को अधिक सरलतासे व्यक्त करता है; सुव्यवस्थित रीतिपर, एक के अनन्तर एकको कहता जाता है; और शब्दों में परिणत होने पर वे अच्छे लगते हैं अथवा नहीं यह भी देखता जाता है। सत्य तो यह है, कि एक दिन पर्यन्त, अपनेही मनमें मनन करनेसे, मनुष्यको जितनी बुद्धिमत्ता आती है, उतनी दूसरेके साथ एक घंटेही भर संभाषण करनेसे आजाती है। एतादृश संभाषणसे, पहले की अपेक्षा, मनुष्य अधिक ज्ञान सम्पन्न होजाताहैं।

ईरानके राजासे थेमिस्टाक्लिस[]ने बहुत ठीक कहा है, कि भाषण


  1. थेमिस्टाक्लिस एथन्स में एक बड़ा बुद्धिमान् शूरवीर और साहसी सेनानायक होगया है। अपरिमित सेना लेकर ग्रीस पर चढ़ाई करने वाले जरकसीज़ नामक फ़ारसके राजाको इसीने परास्त किया। किसी कारण से एथन्स वाले इससे अप्रसन्न होगए; अतः यह ज़रकसीजके पुत्रके पास फ़ारस चला गया। थेमिस्टाक्लिस के लोकोत्तर गुणोंसे मुग्ध होकर फारसके राजा–ज़रकसीज़के पुत्र–ने, पुरानी शत्रुता भूलकर इसको बड़े आदरसे रक्खा–थेमिस्टाक्लिस ४४९ वर्ष ईसवी सन् के पहले मृत्युको प्राप्त हुआ।