८२ वृहदारण्यकोपनिषद् स० +प्रसिद्धःप्रसिद्ध । + भवति-होता+यदा-राय । पश्यन् % वृष्टा । भवति होता है।+तदातय । चक्षुः क्षु के नाम से । + प्रसिद्धःप्रसिद्ध । + भवति होना है। + यदा-जय । शृण्वन् सुननेवाला। भवति होता है। तदा गया धोरम: श्रोत्र के नाम से प्रसिद्धःप्रसिद+भयनि:ोना है। + यदा-सय मन्वाना-मनन करनेवाला। भनिनोना। +तदातब । मना-मन के नाम से प्रसिदापित +भवति-होता है । अस्य-दसक । तानिये। पतानि । कर्मनामानि एव-पय कर्मजन्य नाम हैं। अतःप्रम कारगामः- वह । यःमो । एकैकम्-एक अंग का । उपारले-शामा ममम. कर उपासना करता है। सावद पूर्ण शाग्ना को। न -गा। वेद-ज्ञानता है । हि-क्योंकि । अतः लिये । पर:=पह जीवात्मा । एकैकेन-एक एक भंग करके । अमनःपूती रहता है । + सर्वम्-सबको श्रान्माघारमा । मन्या इनि% मान करके । एवडी । उपासीत-उपासना करें। नियोंकि । अत्र इसी में । एत-ये । समय । एकम् । भन्निही जाते हैं । तत्-तिसी कारण । एतत् यह सीयारमा। पदनीयम खोजने योग्य है । यत्-जिस कारण । अस्य-दम। सर्वस्यमय वस्तु में। अयम्=यह । यात्माचारमा+विद्यमान: विमान है।+ ततः तिसी कारण । अनेन हिम्मी प्रारमा कर दी। +सावह उपासक । एतत् इस । सर्वम्-मयको । दान लेता है । यथा-जिसप्रकार । पदेन-पाद के चित करके निस्सन्देश। अनुविन्देत्-खोये हुये पशु को पुरुप तलाश कर लेता है। एवम् तिसी प्रकार । यःजो कोई । आत्मानम्-मात्मा को। वेद- खोज कर लेता है। सा वह । कीर्तिम्-फीति । + चोर । श्लोकम् यश को। ह-अवश्य । विन्दते-प्राप्त हो जाता है । ।
पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/९८
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।