पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/७९४

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७८० बृहदारण्यकोपनिपद् स० प्रकार की भोग्यसामग्री को देनेवाली है, तू ही मुझ वीरपुरुष के निमित्त कारण होने पर वीर पुत्र को पैदा करती भई है, चूंकि तू हमको वीर पुत्र करती भई है, इस लिये तू बीर- पुत्रवती हो, इसके बाद पुत्र को सम्बोधन करके पिता कहता है कि मैं चाहता हूं कि लोग तुझको ऐसा कहें कि तु अपने पिता से बढ़कर है, तू अपने दादा से बढ़कर है, तू यश, संपत्ति, ब्रह्मतेज करके उत्तम बढ़ती को प्राप्त हुआ है, यह बड़ा आश्चर्य है, आगे श्रुति कहती है कि इस प्रस्तार पुत्रोत्पत्ति विधि के जाननेवाले जिस ब्राह्मण को ऐसा लड़का उत्पन्न होता है वह स्तुति के योग्य अवश्य होता है ॥२८॥ इति चतुर्थं बाह्मणम् ॥ ४ ॥ इति श्रीबृहदारण्यकोपनिषदि भाषानुवादे पष्टोऽध्यायः समाप्तः॥ _______