पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/७९३

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

अध्याय ६ब्राह्मण ४ ७७६ करे कि I + त्वम्-तू । मित्रावरुणी:अरुन्धती तुल्य । असि है । इला-तू पृथिवी तुल्य है यानी सब प्रकार के भोगसामग्री की देनेवाली । + असिम्है । + त्वम्-तू । + मयि वीरे + निमित्ते वीरम् + पुत्रम्-मुझ वीर पुरुप के निमित्तकारण होने पर वीर पुत्र को। अजीजनत्-पैदा करती भई है। या जो। + भवतीत् । अस्मान् हमको । वीरवतावीर पुत्र युक्त । अकरत् करती भई है। + अतः इस लिये । सा-वह । त्वम् तू । वीरवतावीर पुत्रवाती । भव-हो । + अद्य-श्रव । +पुत्रम् + सम्वोध्य-पुत्र को सम्बोधन करके । + पिता आह= पिता कहता है कि I + पुत्र हे पुत्र ! 1+ जनाः लोग ।+ इति%3 ऐसा । + त्वाम्=तुझको । श्राहु-कहैं कि । + त्वम्-तू । अतिपिता अपने पिता से बढ़कर । अभूा हुआ है । वतन्यह बड़ा पाश्चर्य है। + त्वम्-तू । अतिपितामहा-दादा से चढ़कर । अभूः हुआ है । वत-यह बड़ा आश्चर्य है । + च- थोर । या-जो। त्वम्-तू । यशसा-यश करके । श्रिया संपत्ति करके । ब्रह्मवर्चला-ब्रह्मतेज करके । परमाम् उत्तम । काष्ठाम् बढ़ती को। प्रापत्=प्राप्त हुआ है । वत-यह बड़ा पाश्चर्य है। एवंविदः इस प्रकार पुत्रोत्पत्ति विधि के जानने- वाले । + यस्य-जिस । ब्राह्मणस्य-ब्राह्मण को। पुत्र:=ऐसा लड़का । जायते-उत्पन्न होता है। सा-वह । +स्तुत्य% स्तुति के योग्य । + भवति होता है । भावार्थ। हे सौम्य ! इसके पीछे उसकी माता को अभिमन्त्रण करके उसकी प्रशंसा पति करे यह कहता हुआ . कि, हे स्त्री ! तु अरुन्धती तुल्य है, तू पृथिवी तुल्य है, यानी सब