अध्याय ६ ब्राह्मण ४ ७७५ अन्वय-पदार्थ। अथ हवन कर्म के पीछे । अस्य बालक के । दक्षिणम् दहिने । कर्णम् कान को। अभिनिधाय स्पर्श करके।तस्मिन्- उसमें । वाकवाक् । वाकवाक् । इति ऐसा । त्रि: तीन वार | + पिता-पिता + जपति-उच्चारण करे। अथ और । दधि-दही । घृतम्धी । मधु-शहद । संनीय-मिलाकर । अनन्त तहितेन जातरूपेण केवल सोने के शलाके से । प्राश- यति चटावे । + एवम्ब्रुवन्-ऐसा कहता हुआ कि । भू-हे भूः ! । ते-तेरे लिये । दधामिन्दध्यादिक वस्तु को रखता हूं भुवः हे भुवः ! । ते-तेरे लिये। दधामि दध्यादिक वस्तु को रखता है। स्वामहे स्वः !। ते-तेरे लिये । दधामि दध्यादिक वस्तु को रखता हू। भू-हे भूः! । भुवः हे भुवः! । स्वा हे स्वः ! । त्वयि-तेरे बिपे । सर्वम्-सब बचे हुये को । दधामि इति-रखता हूँ। भावार्थ। हे सौम्य ! हवनकर्म के पीछे बालक के दहिने कान में वाक् वाक् ऐसा तीन बार उच्चारण करें, और दही, घी, शहद मिलाकर सोने के शलाके से लड़के के मुँह में चटावे, ऐसा कहता हुआ कि, हे भूः ! तेरे लिये दध्यादि वस्तु को इसके मुख में रखता हूं, हे भुवः'! तेरे लिये इसके मुख में दध्यादि वस्तु रखता हूं, हे स्वः ! तेरे लिये इसके मुख में दध्यादि वस्तु रखता हूं, हे भूः ! हे भुवः ! हे स्वः । तेरे निमित्त सब बचे हुये होम द्रव्य को इसके मुख में रखता हूं।॥ २५ ॥ . , .
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