अध्याय ६ ब्राह्मण ४ ७७३ एक सहस्र मनुष्यों का । पुण्यासम्=पालन पोषण करनेवाला होऊं । + च-और । अस्य-इस मेरे पुत्र के । उपसन्याम् वंश में । + श्रीः प्रजया च पशुभिः माच्छेत्सीत् स्वाहा- लक्ष्मी साथ संतान, द्रव्य और पशुओं के कभी विनाश को न प्राप्त होवे यानी तीनों बने रहें इतना पढ़कर आहुति देवे । च= और । मयि मेरे विप। # या जो । + प्राणा: पाण हैं । + तान्-उन । प्राणान्प्राणों को । त्वयि तेरे में । मनसा-मन द्वारा । जुहोगि स्वाहा-अर्पण करता हूं। + इति-ऐसा कहकर द्वितीय वार याहुति देवे । यत्-जो। अहम् मैं । कर्मणा अत्यरी- रिचम्-अधिक कर्म करता भया हूँ। वा=अथवा । यत्-जो। इह न्यू- नम् अकरम्-न्यून कर्म करता भया हूं। तत्-उसको। विद्वान् = जानता हुमा । अग्निः अग्नि । स्विष्टकृत्-उस किये हुये होम को सुहोम करनेवाला । + भूत्वा होकर । ना हमारे । स्विष्टम् करोतु किये हुये कर्म को सुहुत यानी सुकर्म करे । स्वाहा इति-यह कहकर फिर पाहुति देवे । भावार्थ। जब लड़का पैदा हो जाय तब लड़के को गोद में लेकर और अग्नि को स्थापन कर कांसे के बर्तन में दधिमिश्रित घी को मिलाकर उस दधिमिश्रित घी का थोड़ा थोड़ा हवन नीचे लिखे मन्त्रों को पढ़कर करे, "अंस्मिन्सहस्रं पुण्यास- मेधमान:स्वे गृहे । अस्योपसन्द्यां माच्छैत्सीत्प्रजया च पशु- भिश्च स्वाहा" जिसका अर्थ यह है कि, मैं अपने घर में पुत्रं कलत्र आदि के साथ एक सहस्र मनुष्यों का पालन पोषण करने हारा होऊं, और इस मेरे पुत्र के वंश में लक्ष्मी, सतान, द्रव्य और पशु की. सूरत. में, सदा बनी रहे, मन्त्र 1 .
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