पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/७८३

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अध्याय ६ ब्राह्मण ४ अर्थ यह है कि विष्णुदेव तेरी योनि को पुत्रोत्पत्ति के लिये समर्थ करें, सूर्यदेव तेरे पुत्र के हर एक अङ्ग में रूप देवे और प्रजापति तेरे वीर्य की रक्षा करे, सूत्रात्मा तेरे गर्भ की रक्षा करे, हे दर्शदेवता ! इस मेरी स्त्री के गर्भ की रक्षा कर, स्तुति की गई है जो ऐसी हे सिनीवाली देवी ! इस मेरी स्त्री के गर्भ की रक्षा कर, कमल की माला को धारण करने- वाले प्रकाशमान सूर्य-चन्द्र मेरी स्त्री के गर्भ की रक्षा करें ॥२२॥ मन्त्र: २२ हिरएमयी अरणी याभ्यां निर्मन्थतामश्विनौ । तं ते गर्भ हवामहे दशमे मासि सूतये । यथाऽग्निगर्भा पृथिवी यथा चौरिन्द्रेण गर्भिणी । वायुर्दिशांयथा गर्भ एवं गर्भ दधामि तेऽसाविति ॥ पदच्छेदः। हिरण्मयी,भरणी, याभ्याम् , निर्मन्थताम् , अश्विनौ, तम्, ते, गर्भम्, हवामहे, दशमे, मासि, सूतये, यथा, अग्निगर्भा, पृथिवी, यथा, यौः, इन्द्रेण, गर्भिणी, वायुः, दिशाम् , यथा, गर्भः, एवम् , गर्भम्, दधामि, ते, असौ, इति ।। अन्वय-पदार्थ । द्यावापृथिवी-धौ और पृथिवी । हिरण्मयी=प्रकाशरूप । अरणीघरणि हैं। याभ्याम्-जिन करके । अश्विनौ जैसे सूर्य और चन्द्रमा । + गर्भम् गर्भ को। निर्मन्थताम् मन्थन करतें भये ।+ तद्वत्-उसी तरह । ते। दशमे दश ।मासि% मास में । सूतये-पुत्र उत्पन्न होने के लिये । ते तेरे । गर्भम्-गर्भ को ।+ दधावहे स्थापित करें । 'यथा जैसे ।