अध्याय ६ब्राह्मण ४ प्रजापति । आत्मनः अपने । एतम्-इस । प्राञ्चम्यानिबिषे जानेवाले।+प्रजननेन्द्रियम्-प्रजननेन्द्रिय को।समुदपारयत्- फलप्रद सामर्थ्य से पूर्ण करता भया । + च पुनः और फिर । तेन-तिस ऐसी इन्द्रिय करके एनाम्-उस स्त्री से । अभ्यसृजत-संसर्ग करता भया । भावार्थ। हे सौम्य ! वह प्रजापति सृष्टि के पहिले बड़ी अनुग्रह के साथ विचार करता भया कि इस पुरुष के उत्पन्न करने- वाले वीर्य को कोई शुभस्थान मैं दूं ताकि वह विशेष फल- दायक हो, ऐसा सोचने पर उसने स्त्री जाति को उत्पन्न किया और उत्पन्न करके उसके साथ मैथुनकर्म करता भया, फिर वह प्रजापति अपने प्रकृष्टगामी प्रजनन इन्द्रिय को उस स्त्री के उपस्थ में स्थापित करता भया (जैसे वाजपेय यज्ञ में सोम- लता से रस निकालने के निमित्त सिल पर लोढ़ा स्थापित करते हैं) और फिर उसी अपनी इन्द्रिय करके उस स्त्री से पुत्रोत्पत्ति- निमित्त संसर्ग करता भया इसलिये स्वभार्या स्त्री के साथ पुत्रोत्पत्तिनिमित्त सबको संसर्ग करना चाहिये ॥ २ ॥ तस्या वेदिरुपस्थो लोमानि बर्हिश्चर्माधिषवणे समिद्धो मध्यतस्तौ मुष्कौ स यावान्ह वै वाजपेयेन यजमानस्य लोको भवति तावानस्य लोको भवति य एवं विद्वान- धोपहासं चरत्यासाछ स्त्रीणा, सुकृतं कृतेऽथ य इदम- विद्वानधोपहासंचरत्यस्य स्त्रियः सुकृतं वृञ्जते ।।
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