अध्याय ६ ब्राह्मण ३ ७३३ . , मन्त्रः ११ एतमु हैव जानकिरायस्थूणः सत्यकामाय जावाला- यान्तेवासिन उक्त्वोवाचापि य एनछ शुष्के स्थाणौ निपिञ्चेजायेरञ्छाखाः प्ररोहेयुः पलाशानीति ।। पदच्छेदः। एतम् , उ, ह, एत्र, जानकिः, प्रायस्थूणः, सत्यकामाय, जाबालाय, अन्तवासिने, उक्त्वा, उवाच, अपि, यः, एनम्, शुष्के, स्थाणौ, निपिञ्चेत् , जायेरन् , शाखाः, प्ररोहेयुः, पलाशानि, इति ॥ अन्चय-पदार्थ । ह उ-फिर । जानकिा जनक के पुत्र । आयस्थूण:-पाय- स्थूण । एतम् एव इसी होमविधिको । उक्त्वा-उपदेश देकर । अन्तेवासिने-अपने शिष्य । जाचालाय-बल के पुत्र । सत्य- कामाय-सत्यकाम के प्रति । उवाच कहता भया कि । यामी कोई यज्ञकर्ता । एनम्-इस मन्थ को। शुष्के-सूखे । स्थाणी- वृक्ष पर । श्रपि-भी। निषिञ्च त्-हाल देवे तो । शाखा:- उसमें से ढालियां । जायेरन् निकल भावें । + चन्और । पलाशानिम्पत्तियां । प्ररोहेयुः इति जग जायें । भावार्थ । इसके पश्चात जनक के पुत्र श्रायस्थूण इसी होमविधि को अपने शिष्य जबल के पुत्र सत्यकाम को उपदेश देकर कहता भया कि जो कोई इस मन्थ को सूखे वृक्ष पर डाल देवे तो उसमें से डालियां निकल आवे और पत्तियां लग जाय ॥११॥
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