पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/७४५

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अध्याय ६ ब्राह्मण ३ मन्त्रः एतमु हैव मधुकः पैङ्गन्यश्चूलाय भागवित्तयेऽन्तेवासिन उक्त्वोवाचापि य एन शुष्क स्थाणौ निपिञ्चेज्जायेर- शाखाः प्ररोहेयुः पलाशानीति ।। पदच्छेदः। एतम्, उ, ह, एव, गधुकः, पैङ्गयः, चूलाय, भागवित्तये, अन्तेवासिने, उक्त्वा, उवाच, अपि, यः, एनम्, शुष्के, स्थाणौ, निपिञ्चेत्, जायेरन् , शाखाः, प्ररोहेयुः, पला- शानि, इति ॥ अन्वय-पदार्थ। हफिर । पैङ्गया=पिन का पुत्र । मधुका-मधुक । पतम् एव-इस होमविधि को । उक्त्वा-उपदेश करके । अन्तेवासिने= अपने शिष्य । भागवित्तये-भगवित्ति के पुत्र । चूलाय-चूल के प्रात । उवाच कहता भया कि । या जो यज्ञकर्ता । एनम्-इस मन्थ को। शुपके-सूखे । स्थाणी-पेड़ पर । निषिञ्चत् डाल देवे तो उसमें से । शाखा: डालियां । जायेरन्-निकल धावें । + च और । पलाशानि-पत्तियों । प्ररोहेयुः इति लग जायें । भावार्थ । फिर पिङ्ग का पुत्र मधुक. इसी होमविधि को उपदेश करके अपने शिष्य भगवित्ति के पुत्र चूल के प्रति कहता भया कि जो कोई इस मन्थ को सूखे वृक्षपर डाल देवे तो उसमें से डालियां. निकल पावें और पत्तियां लग जायें ॥ १॥