.. . ७२४ वृहदारण्यकोपनिपद् स० राजेशानोऽधिपतिः स माछ राजेशानाऽधिपति करोत्विति ॥ पदच्छेदः। अथ, एनम्, उद्यच्छति, आमंसि, श्रामहि, ते, महि, सः, हि, राजा, ईशानः, अधिपतिः, सः, मां, राजा, ईशानः, अधिपतिम् , करोतु, इति । अन्वय-पदार्थ। अय-इसके उपरान्त । एनम् इस मग्ध को। + अध्वर्यु: अध्वर्यु ।+ मन्यम्=मन्य को। हस्ते-हाथ में । उद्यच्छति लेता है । + चन्धौर । + आह-कहता है कि मन्य-६ मन्थ ! 1 + त्वम्-तू । + सर्वम् सय । श्रामसिमानता है। + वयम्-हम लोग। ते-तेरें । महि महिना को । ग्रामंदि- मानते हैं। सः वही श्राप । हि-प्रवश्य । राजा-रामा है। ईशानः सबका नियन्ता । अधिपतिः सपके पालक है। सा पाप सबके । राजा-मालिक है। ईशाना सयके शासन करनेहारे हैं। माम्-मुझको । अधिपतिम् सयका अधिपति । करोतु इति करें। भावार्थ । हे सौम्य ! पूर्वोक्त प्रार्थना के पश्चात् मन्य सहित पात्र को हाथ में उठा लेता है और उससे प्रार्थना करता है, हे ब्रह्मन् ! हे मन्य ! तू सबका जाननेवाला है हम तेरे महत्त्व को अच्छी तरह जानते हैं, तू ही सबका राजा है, सबका शासन करनेहारा है, इसलिये तू ही सबका अधिपति है, वही तू राजा सबका मालिक मुझको भी लोक में सबका अधिपति बना ॥ ५ ॥ तू ही
पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/७३८
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।