पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/७२२

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बृहदारण्यकोपनिषद् म० प्राप्त होते हैं। + तदातव । तान-उन । वैधुतान-विद्युन् शभिमानी देवता को प्राप्त पुरुषों को। मानसः-मन से सम्बन्ध रखनेवाला । पुरुषकोई पुरुष । एत्य-प्राकर + तम्-उ.स. को । ब्रह्मलोकान् ब्रह्मलोक को । गमयति-ने जाता है। ते- चे। पराश्रेष्ठ लोग । तेघुम्दन । बहालोकपु-यानोकों में। परावतःअनेक वर्षों तक । लन्तिम्घास करनेई ।च- और । पुना-फिर । तेपाम्-उनकी । श्रावृतिः प्रावृत्ति । + संसारे इस संसार में । न-नहीं। + भवति-हानी है। भावार्थ हे गौतम ! जो विद्वान् इस प्रकार हम पजाग्निविधा को जानते हैं और जो वन में श्रद्धासहित सत्य ग्राम की उपा- सना करते हैं, ये दोनों अर्चि अभिमानी देवता को प्राप्त होते है, और अर्चि अभिमानी देवता से दिन थभिमानी देवता को प्राप्त होते हैं, दिन अभिगानी देवता से शुरूपक्ष अभिमानी देवता को प्राप्त होते हैं, शुक्लपक्ष अभिमानी देवता में उन छह महीना अभिमानी देवता को प्राप्त होते हैं, जिसमें छह महीना तक सूर्य उत्तरायण रहता है, उस छह महीना श्रभि- मानी देवता से देवलोक को प्राप्त होते हैं, देवलोक से सूर्य- लोक को प्राप्त होते हैं, सूर्यलोक से विद्युत्लोक के अभि- मानी देवता को प्राप्त होते हैं, तब उन विद्युत् प्राप्त हुये पुरुपों को मन से सम्बन्ध रखनेवाला कोई पुरुप श्राकर उन- को ब्रह्मलोक में ले जाता है, वे ब्रह्मलोक को प्राप्त हुये प्रेम पुरुप उन लोकों में अनेक वर्षों तक वास करते हैं, और फिर उनकी प्रावृत्ति संसार में नहीं होती है ॥ १५ ॥ -