अध्याय ६ ब्राह्मण २ ७०१ अन्वय-पदार्थ। गौतम हे गौतम ! पर्जन्यः पर्जन्य । वै-ही । अग्नि:- द्वितीय अग्निकुण्ड है। तस्य-उस अग्निका।समित्-समिध् यानी इन्धन । एव-ही। संवसरः संवत्सर है । धूम-धूम उसके। अम्राणिबादल हैं। अर्चिः उसकी ज्वाला । विद्युत्-विजली है। अङ्गारा: उसके अङ्गार । अशनिः वज्र हैं । विस्फुलिङ्गा- उसकी चिनगारियां । हादुनयः गर्जन शब्द हैं । तस्मिन्= उस । एतस्मिन्-इस । अग्नौ-अग्नि में । देवाः देवता लोग । सोमम् राजानम् सोम राजा का । जुह्वति होम करते हैं। तस्या-तिस । आहुत्यैम्साहुति करके । वृष्टिः-वृष्टि । संभवति होती है। भावार्थ । हे गौतम ! पर्जन्य ही द्वितीय अग्निकुण्ड है, ऐसे अग्नि- कुण्ड का ईधन संवत्सर है, उसका धूम बादल है, उसकी ज्वाला बिजली है, उसका अंगार वज्र है, उसकी चिनगा- रियां गर्जना है, ऐसी अग्नि में होता लोग सोमराजा का हवन करते हैं, उस दिये हुये आहुति करके वृष्टि होती है ॥१०॥ मन्त्रः ११ अयं वै लोकोऽग्निौतम तस्य पृथिव्येव समिंदग्नि- ● मो रात्रिरर्चिश्चन्द्रमा अङ्गारा नक्षत्राणि विस्फुलिङ्गा- स्तस्मिन्नेतस्मिन्नग्नौ देवा दृष्टिं जुह्वति तस्या आहुत्या अन्न संभवति ॥ पदच्छेदः। अयम्, वै, लोकः, अग्निः, गौतम, तस्य, पृथिवी, एव; .
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