अध्याय ६ ब्राह्मण २ महादि हमारे पितामहादि के अपराध को क्षमा करते आये हैं, हे गौतम ! यह ब्रह्मविद्या वास्तव में पहिले क्षत्रिय के कुल में रही है. किसी ब्राह्मण के घर नहीं रही थी इस बातको आप भी जानते हैं, यह प्रथम बार है कि क्षत्रिय से ब्राह्मण के पास जायगी | उस विद्या को जिसको आप चाहते हैं, अवश्य दूंगा, कौन पुरुष है जो ऐसे कोमल वचन बोलनेवाले ब्राह्मण को इस विद्या के देने से इनकार करेगा । आप इसके पात्र हैं, आपके लिये इस विद्या को अवश्य दूंगा ॥ ८ ॥ मन्त्र: 8 असा चै लोकोऽग्निगौतम तस्यादित्य एव समि- द्रश्मयो धमोऽहरचिर्दिशोऽङ्गारा अवान्तरदिशो विस्फु- लिङ्गास्तस्मिन्नेतस्मिन्नग्नौ देवाः श्रद्धां जुह्वति तस्या आहुत्यै सोमो राजा संभवति । पदच्छेदः । असौ, वै, लोकः, अग्निः, गौतम, तस्य, आदित्यः, एव, समित् , रश्मयः, धूमः, अहः, अर्चिः, दिशः, अङ्गाराः, अवान्तरदिशः, विस्फुलिङ्गाः, तस्मिन् . एतस्मिन्, अग्नौ, देवाः, श्रद्धाम् , जुह्वति, तस्याः, आहुत्यै, सोमः, राजा, संभवति ॥ अन्वय-पदार्थ । गौतम हे गौतम ! । असौ-वह । लोक स्वर्गलोक । वै निश्चय करके । अग्निःप्रथम अग्निकुण्ड है। तस्य-उस अग्नि का । समित्-इन्धन । आदित्यः सूर्य है । धूम-धूम । रश्मयः-किरण हैं। अर्चिः उसकी ज्वाला । अहः दिन अङ्गारा:-अंगार । दिशा-दिशायें हैं। विस्फुलिङ्गा उसकी
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