पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/७१२

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

बृहदारण्यकोपनिषद् स० पदच्छेदः। सः, इ, उवाच, तथा, नः, त्वम्, गौतम, मा, अपराधाः, तब, च, पितामहाः, यथा, इयम् , विद्या, इतः, पूर्वम् , न, कस्मिन् , चन, ब्राह्मणे, उवास, ताम् , तु, अहम् , तुम्यम् , वक्ष्यामि, कः, हि, तु, एवम् , ब्रुवन्तम् , अर्हति, प्रत्याख्यातुम् , इति ॥ अन्वय-पदार्थ। ह-तव | सान्त्रह प्रवाहण राजा। उवाच कहने लगा कि । गौतम हे गौतम ! त्वम्-घाप । तथा मे ही । नः मा अप- राधाः हमारे अपराध को समा करें। यथा जैसे 1 + तक अापके। पितामहाः पूर्वजलोग । + पितामहा-हमारे पूर्वज लोगों को। क्षमायन्ते +स्म-तमा करने याये हैं। चौर । गौतम हे गौतम ! । इतः इससे । पूर्वम-पहिले । इयम्-यह । विद्या-विद्या । कस्मिन्-किसी। चन भी। ब्राह्मणे-ग्रामण में । न-नहीं। उवासम्वास करती थी। तु-परन्तु । अदम्- मैं । तुभ्यम्-तुम्हारे लिये । + =अवश्य । ताम्-इस विद्या को। वक्ष्यामि कहूँगा। हि-क्योंकि । एवम् ऐसे कोमल वचन । ब्रुवन्तम्-कहनेवाले । त्वामाप ग्रामण को । का कौन पुरुप । प्रत्याख्यातुम्-निरादर करना । अहति इति= योग्य समझेगा। भावार्थ। हे सौम्य ! तब राजा प्रवाहण कहने लगा कि हे गौतम ! जो मैंने आपसे पहिले कहा था कि आप देववर मांगते हैं उस वर को छोड़कर और कोई मनुष्यसम्बन्धी वर मांग लीजिये। यदि आपको मेरे इस कहे हुये से क्लेश हुआ है तो मेरे अपराध को आप वैसे ही क्षमा करें जैसे आपके पिता पिता-