कि ६१२ बृहदारण्यकोपनिषद् स० इति-ऐसा कहकर । प्रतीकानि-सव प्रश्नों को । उदाजहार- कहता भया । भावार्थ। हे सौम्य ! इसके पश्चात् राजा प्रवाहण ने श्वेतकेतु से अपने निकट रहने के लिये कहा, परन्तु वह कुमार राजा के वचन को निरादर करके अपने घर चला गया, और अपने पिता के पास जाकर ऐसा कहने लगा कि आपने पहिले कहा था भलीप्रकार शिक्षित हुआ है, यानी सब विद्या का ज्ञाता होगया है, क्या यह बात ऐसी नहीं है, पिता ने कहा, हे मेरे प्रिय पुत्र | तेरे ऐसे कहने का क्या कारण है ? पुत्र ने उत्तर दिया कि प्रवाहण राजा ने मुझसे पांच प्रश्न किये, पर मैंने एक का भी उत्तर न जान पाया इस पर पिता ने वे प्रश्न कौन से हैं, तब पुत्र ने कहा ये प्रश्न ये हैं, ऐसा कहकर प्रश्नों को कहता भया ॥ ३ ॥ मन्त्रः४ स होवाच तथा नस्त्वं तात जानीथा यथा यदहं किंचन वेद सर्वमहं तत्तुभ्यमबोचं प्रेहि तु तत्र प्रतीत्य ब्रह्मचर्य वत्स्याव इति भवानेव गच्छत्विति स आजगाम गौतमो यत्र प्रवाहणस्य जैवलेरास तस्मा आसनमाहृत्योदकमा- हारयाश्चकाराथ हास्मा अयं चकार त होवाच वरं भगवते गौतमाय दब इति । पदच्छेदः। सः, ह, उवाच, तथा, नः, त्वम्, तात, जानीयाः, यथा, यत्, अहम्, किंचन, वेद, सर्वम्, अहम् , तत्, तुभ्यम् , -
पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/७०६
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।