पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/७०४

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६९० बृहदारण्यकोपनिषद् स० लोक क्यों नहीं जीवों करके भर जाता है ? श्वेतकेतु ने उत्तर दिया मैं नहीं जानता हूं, फिर राजा ने पहा हे कुमार : कितनी बार अग्नि में आहुति देने से जल से लिपटा हुआ जीव उठकर बोलने लगता है यानी पुरुष हो जाता है, क्या तू जानता है ? श्वेतकेतु ने उत्तर दिया मैं नहीं जानता ई फिर राजा ने पूछा हे श्वेतकेत, हे कुमार ! दबयान श्रीर पितृयान मार्ग का साधन कौनसा है ? तू जानता है जिस करके विधिपूर्वक देवयान या पितृयान मार्ग को जाय जाते हैं । यदि कोई शङ्का करे कि ऐसे मार्ग हैं नहीं तो इस पर राजा वेद का प्रमाण देता है और कहता है कि क्या यापने वेद के उस वचन को नहीं सुना है ? जो इन दोनों मागों को बताता है, मैंन तो सुना है एक यह मार्ग है जो जीवों को पितृलोक में लेजाता है, और दूसरा यह मार्ग है जो जीवों को देवलोक में ले जाता है, यही दो मार्ग जिन करके जीव नी जाते हैं, पितारूपी धुलोक है, मातारूपी पृथिवी- लोक है, इन्हीं दो लोकों के मध्य में ये दोनों मार्ग विद्यमान हैं, क्या तू इन सब बातों को जानता है ? श्वेतकेतु ने उत्तर दिया इनमें से मैं किसी को नहीं जानता हूँ ॥ २ ॥ मन्त्र: अथैनं वसत्योपमन्त्रयाञ्चक्रेनादृत्य वसतिं कुमारः प्रदुद्राव स आजगाम पितरं तछ होवाचेति वाव किल नो भवान्पुरानुशिष्टानवोचतेति कथई, सुमेध इति पञ्च मा.प्रश्नान् राजन्यवन्धुरपालीत्ततो नैकंचन वेदेति कतमे तइतीम इति हंप्रतीकान्युदाजहार ।। .