अध्याय ६ ब्राह्मण १ ६८३ प्राण !। त्वम्-तू । तदायतनम्-उसका यानी मेरा भी पाय- तन। असि है। इति-ऐसेही ।+ रेतः वीर्य । + उवाच-बोला कि। यत् वै-यद्यपि । अहम्=मैं । रेतःवीयं । प्रजातिःप्रजनन शनिवाला अस्मि-हूँ। तथापि-पर।+प्राण हे प्राण !। त्वम् तू । तत्प्रजाति: उसका यानी मेरा भी प्रजनन शनिवाला । असि इति है। प्राणः प्राण । + उवाच-बोला कि । + यदि यदि । + एवम्-तुम्हारा ऐसा कहना । + साधु-ठीक है तो। + ब्रूत-तुम लोग कहो कि । तस्य उ-उस । मे मुझ प्राण का । अन्नम्-भोजन । किम् क्या है ? । + च और । वास:= वस्त्र । किम्-कया है ? । इति यह सुनकर । ते-वे सब वागादि । + आहुः बोले कि । + लोके-लोक में। यत्-जो । किंच कुछ । इदम् यह यानी । आश्वभ्यः=कुत्तों तक । प्राकृमिभ्यः कृमियों तक । पाकीटपतंगेभ्यः कीट पतंगों तक I +अस्ति- है। तत्-वह सब । ते भोग:-तेरा ही भोग । + अस्ति है। + चम्चौर । प्रापः जल । वासा-तेरा वस्त्र है । यःजो उपासक । एवम्-इस प्रकार । अनस्य-प्राण के । एतत्-इस । अन्नम् अन्न यानी भोग को । वेद मानता है । + तस्य- उसको । प्रतिगृहीतम्-प्रतिग्रह यानी गजादि दान । अनन्नम् = अन्न से भिन्न यानी भोग वस्तु से पृथक् । ननहीं है यानी उसमें कोई दोप नहीं है । + च और । तत्-वैसे ही । अस्य-इस प्राण का । जग्धम्-खाया हुया । अनन्नम्-अन्न से भिन्न यानी भोज्य वस्तु से भिन्न । न ह वै निश्चय करके नहीं है यानी संब अन्नरूप ही है । + तस्मात् इसलिये । श्रोत्रिया: वेदपाठी । विद्वांसाबाह्मण । अशिष्यन्तः भोजन करने की इच्छा करते हुये यानी भोजन करने से पहिले । आचामन्ति-अल से पाच- मन करते हैं । चिऔर । अशित्वा भोजन करके । आचा-
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