. ६७० वृहदारण्यकोपनिषद् स० अन्वय-पदार्थ। यः:ह-सो पुरुष । वै-निश्चय करके । प्रजातिम्-प्रजाति को ह-भलीप्रकार । वेद जानता है। + सा=बह पुरुप । हर अवश्य । प्रजया संतान करके ! पशुभिः पशुओं करके । +संपन्नः संपत्तिवाला। प्रजायते-होता है। + प्रश्नःप्रश्न । +प्रजाति:-प्रजाति: + का क्या वस्तु है ? उत्तरम् उत्तर । रेता वीर्य । प्रजातिः प्रजाति है । या जो पुरुष । एवम् इस प्रकार । वेद-जानता है। + सा=बह । प्रजया-संतान करके । पशुभिः पशुओं करके । + संपन्नःसंपत्तियाला । प्रजायते-होता है। भावार्थ । जो प्रजाति को अच्छीतरह जानता है . वह संतान करके, पशुओं करके संपत्तिवाला यानी धनाढ्य होता है। प्रश्न-प्रजाति क्या वस्तु है ?, उतर-वीर्य प्रजाति है, जो पुरुप इस प्रकार जानता है वह संतान करके, पशुओं करके संपत्तिवाला होता है ॥ ६ ॥ मन्त्रः ७ ते हेमे प्राणा अथ्श्रेयसे विवदमाना ब्रह्म जग्मुस्त- दोचुः कोनो वसिष्ठ इति तद्धोवाच यस्मिन्य उत्क्रान्ते इदछ शरीरं पापीयो मन्यते स वो वसिष्ठ इति । पदच्छेदः। ते, ह, इमे, प्राणाः, अहं, श्रेयस, विवदमानाः, ब्रह्म, जग्मुः, तत्, ह, ऊचुः, कः, नः, वसिष्ठः, इति, तत्, इ, उवाच, यस्मिन् , वः, उत्क्रान्ते, इदम्, :शरीरम् , पापीयः, मन्यते, सः, घः, वसिष्ठः, इति ॥ .. . .. . .. .
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