वृहदारण्यकोपनिषद् स० चैनिस्सन्देह । चलिष्ठा-शरीर के अन्दर रहनेवाली इन्द्रियों में मे अतिश्रेष्ठ है।+ अतः इसलिये। यात्रो पुम्प । एवम् इस प्रकार । वेद-जानता है । सःबह पुरुष । स्वानाम् थपने सम्बन्धियों में । वसिष्ठः श्रेष्ट । भवति-धोता है । च% और । अपि-सिवाय इसके । येपाम और जिन लोगों के मध्य में .। + सःबह पुरुप । भूपति श्रेष्ठ होने की इच्छा करता है। + तेषाम् उन लोगों के मध्य में भी 1 + सः बाट पुरुष । + वसिष्ठःश्रेष्ट । भवति होना है। भावार्थ । जो पुरुप रहनेवालों में से श्रेष्ट को जानता है वह अपने सम्बन्धियों के वि ज्येष्ठ श्रेष्ट होता है, वाणी शरीर के अन्दर रहनेवाली इन्द्रियों में से अति श्रेष्ट है, इसलिये जो पुरुष वाणी को इस प्रकार जानता है वह भी अपने सम्ब- धियों में अतिश्रेष्ठ होता है, इतना ही नहीं किन्तु इसके सिवाय जिन लोगों के मध्य में यह पुरुप श्रेष्ट होने की इच्छा करता है उन लोगों के मध्य में भी अनि श्रेष्ट होता है ।।२।। मन्त्रः३ यो ह वै प्रतिष्ठां वेद प्रतितिष्टति समे प्रतितिष्ठति दुर्गे चक्षुर्वै प्रतिष्ठा चक्षुपा हि समे च दुर्ग च प्रतितिष्टति प्रतितिष्ठति समे प्रतितिष्ठति दुर्गे य एवं वेद ।। पदच्छेदः। यः, ह, वै, प्रतिष्ठाम् , वेद, प्रतितिष्ठति, समे, प्रतितिष्ठति, दुर्गे, चक्षुः, वै, प्रतिष्ठा, चक्षुषा, हि, समे, च, दुर्गे, च, प्रतितिष्ठति, प्रतितिष्ठति, समे, प्रतितिष्ठति, दुर्ग, यः, एवम् , . वेद ॥
पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/६८०
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।